नेशनल मिशन पर निकले नीतीश कुमार के दिल में क्या है? जाने

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजनीतिक दौरे कर रहे हैं, ममता बनर्जी और अखिलेश यादव से मुलाकात के बाद नीतीश कुमार के दिल में क्या चल रहा है

स्टार एक्सप्रेस/संवाददाता

 दिल्‍ली:  बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजनीतिक दौरे कर रहे हैं। ममता बनर्जी और अखिलेश यादव से मुलाकात के बाद नीतीश कुमार के दिल में क्या चल रहा है, इसे लेकर सियासी चर्चा और अटकलों का बाजार गर्म है। दिल्ली की तरफ देख रहे नीतीश कुमार के बारे सवाल पूछे जा रहे हैं कि आखिर उनके दिल में क्या है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दिल में क्या चल रहा है? ये शायद ही कोई जान सके लेकिन इतना तय है कि राज्य की सियासी चर्चा के केंद्र में वे हमेशा बन रहते हैं। फिलहाल, नीतीश कुमार के राजनीतिक दौरों की चर्चा बिहार ही नहीं उसके बाहर भी हो रही है। नीतीश कुमार ने हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव से मुलाकात की है। नीतीश कुमार बार-बार ये दोहरा भी रहे हैं कि वे प्रधानमंत्री पद की दौड़ में नहीं हैं।

इन सबके बीच सियासत के जानकार मानते हैं कि नीतीश कुमार सियासत में सधे कदम उठाने वाले नेता है। अभी उनके मन में क्या चल रहा है, इसका अंदाजा लगाने से पहले कुछ बातें समझ लेना जरूरी है। नीतीश की सियासी मंशा समझने से पहले अंबेडकर जयंती पर दिया गया उनका बयान याद कर लीजिए। पटना में अंबेडकर जयंती पर आयोजित  कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे नीतीश कुमार ने सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए भारतीय जनता पार्टी पर जमकर हमला बोला था।

कार्यक्रम में जेडीयू कार्यकर्ताओं ने जब नीतीश कुमार के पीएम बनने को लेकर नारे लगाने लगे, तब सुशासन बाबू ने हाथ जोड़ लिए। नीतीश कुमार ने कहा था, एगो बात हम हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं कि मेरे बारे में मत नारा लगाइए। यही बनेंगे नेता ये सब छोड़ दीजिए। हमको तो सबको एकजुट करना है।  बिलकुल अच्छे ढंग से हो जाए माहौल जिससे देश को फायदा हो। खाली मेरा नमावा लीजिएगा तो बिना मतलब का चर्चा होगा। तो मेरा नाम मत लीजिए हम हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं सब लोगों से भाई मेरा नाम मत लीजिए, हम घूम रहे हैं तो हमहीं बनेंगे, ऐसा मत बोलिए प्लीज।

नीतीश कुमार के इस बयान के बड़े मायने हैं। जानकार कहते हैं कि नीतीश कुमार राष्ट्रीय राजनीति में बैक सपोर्ट कर हलचल लाना चाहते हैं। नीतीश सधे कदम उठाते हैं। उन्हें पता है कि देश में बहुमत वाली सरकार के विरोध में फ्रंट कभी सक्सेस नहीं रहा है। इसलिए वे सामने आकर खेलने से बच रहे हैं।

महागठबंधन में आना नीतीश की रणनीति का हिस्सा

बीजेपी को छोड़कर महागठबंधन में आना नीतीश की रणनीति का खास हिस्सा है। नीतीश को पता था कि वे बीजेपी के साथ रहते हुए राष्ट्रीय स्तर पर नहीं उभर पाएंगे। वे तीसरी पंक्ति के नेता भर बनकर रह गए थे। बीजेपी की नजर में सीएम नीतीश की सियासी वैल्यू मध्य प्रदेश और बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से ज्यादा कुछ नहीं थी।

नीतीश को यही बात कचोट रही थी। उन्हें पता है कि वे पहली पंक्ति के राजनेता हैं। बीजेपी के साथ रहते हुए उन्हें पहली पंक्ति वाला भाव नहीं मिलेगा। उसके बाद उन्होंने बीजेपी से नाता तोड़ लिया। महागठबंधन में आते ही एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर उनका चेहरा चर्चा का विषय बना हुआ है।

नीतीश कुमार के मन में एक और सवाल भी है। उन्हें लगता है कि गुजरात का मुख्यमंत्री रहने वाला कोई व्यक्ति पीएम बन सकता है, वो विपक्षी एकता की कवायद के जरिए बिहार का मुख्यमंत्री होकर पीएम क्यों नहीं बन सकते हैं। जानकार कहते हैं कि पीएम मोदी और नीतीश में शुरू से ही सियासी प्रतियोगिता चलती रही है। नरेंद्र मोदी जब गुजरात में महज सीएम थे, तब बीजेपी के बड़े केंद्रीय नेताओं के साथ नीतीश कुमार के गहरे संबंध थे।

राजनीति जब चाहें तब मोड़ लेते हैं

नीतीश कुमार जब चाहें, अपने अनुसार राजनीति को मोड़ देते हैं। बिहार के सभी राजनीतिक दलों को वो अपने चश्मे में उतार चुके हैं, चाहे आरजेडी हो या बीजेपी स्थिति ये है कि जो आरजेडी 2020 में उन्हें मुख्यमंत्री भी नहीं बनने देना चाहती थी, आज प्रधानमंत्री बनाना चाहती है और उसके लिए मेहनत भी कर रही है।  ऐसा इसलिए कि नीतीश कुमार पीएम बनें तो बिहार कि गद्दी तेजस्वी यादव को मिल जाए। इससे नीतीश कुमार की राजनीतिक हैसियत का अंदाजा लगाया जा सकता है।

नीतीश कुमार को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है। कारण कई हैं। वे सधे सियासतदां हैं। उनके पॉलिटिकल मूव को पकड़ लेना सबके बस की बात नहीं। वे सियासत में अपना कदम फूंक-फूंक कर रखते हैं। जानकार मानते हैं कि बीजेपी से अलग हटने के बाद उनकी विपक्ष में स्वीकार्यता बढ़ गई है। मोदी के खिलाफ विपक्ष को तगड़ा चेहरा चाहिए था।

नीतीश में वो बात दिखती है। इंजीनियर हैं। आंकड़ों का खेल समझते हैं। देश की नब्ज पहचानते हैं। शासन चलाने का अच्छा खासा अनुभव रखते हैं। केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। हालांकि, मोदी तो पीएम बनने से पहले केंद्र में किसी पद पर भी नहीं रहे. नीतीश कुमार बाद में इस बात को भी भुना सकते हैं। नीतीश कुमार फिलहाल किस ओर कदम बढ़ा रहे हैं, इसे लेकर सिर्फ अटकलें ही लगाई जा रही हैं।

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