हरितालिका तीज :आज रखा जाएगा निर्जला उपवास, नोट कर लें पूजा का समय और विधि

स्टार एक्सप्रेस डिजिटल : नहाय-खाय के साथ बुधवार से हरितालिका तीज व्रत की शुरुआत हुई। गुरुवार को सुहागिन महिलाएं 24 घंटे तक निर्जला रहकर पति की लम्बी उम्र के लिए भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करेंगी। कुंवारी लड़कियां भी अच्छे वर और रिश्ते में प्रेम बढ़ाने के लिए यह व्रत रखेंगी।

 

 

 

ज्योतिष के जानकार पं. मोहन कुमार दत्त मिश्र बताते हैं कि हरितालिका तीज व्रत भाद्र माह के शुल्क पक्ष तृतीया तिथि को मनाया जाता है। सुहागिन महिलाएं निर्जला व निराहार रखकर तीज व्रत करती हैं। शाम में भगवान शंकर व माता पार्वती की मिट्टी की प्रतिमाएं बनाकर पूजा-अर्चना की जाती हैं। नये-नये परिधानों व सोलह श्रृंगार कर सजी महिलाओं से घर-आंगन चहक उठता है। पूजन के बाद महिलाएं रात भर भजन-कीर्तन करती हैं।

 

 

 

 

अहले सुबह में पारण के बाद महिलाएं अन्न-जल ग्रहण करती हैं। खास यह कि इस बार पूजा का शुभ मुहूर्त दिनभर है। इधर, व्रत को लेकर बाजारों में दिनभर काफी चहल-पहल दिखी। फल और पूजन सामग्रियों की दुकानों पर खरीदारों की भीड़ जुटी रही। मिट्टी से बनीं गौरा-गणेश की प्रतिमाएं खरीदने में महिलाएं मशगूल दिखीं।

 

 

 

शुभ मुहूर्त – मेहत्रावां निवासी हरिओम पांडेयय ने बताया कि हरतालिका तीज की पूजा के दो शुभ मुहूर्त बन रहे हैं। पहला शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 03 मिनट से 8 बजकर 33 मिनट तक और दूसरा शुभ मुहूर्त शाम को 6 बजकर 33 मिनट से रात 8 बजकर 51 मिनट तक है।

 

 

 

पूजा विधि – मेहत्रावां निवासी पुरोहित राजेन्द्र पाण्डेय ने बताया कि व्रत में भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की मिट्टी से प्रतिमाएं स्थापित कर पूजा की जाती है। माता पार्वती को सुहाग की वस्तुएं चढ़ाएं और शिव व गणेश भगवान को वस्त्र आदि भेंट करें। पूजन के समय हरतालिका तीज व्रत की कथा ब्राह्मणों द्वारा जरूर सुननी चाहिए।

 

 

 

क्यों पड़ा हरितालिका नाम – सोहसराय हनुमान मंदिर के पुजारी पं. सुरेन्द्र कुमार दत्त मिश्र बताते हैं कि यह व्रत भाद्र मास की तृतीया तिथि के साथ चतुर्थी तिथि और हस्त नक्षत्र के मिलने पर मनाया जाता है। तृतीय तिथि होने के कारण इसे ‘तीज नाम पड़ा। ऐसी मान्यता है कि माता पार्वती के पिता हिमवान भगवान विष्णु के साथ पार्वती जी की शादी करना चाहते थे। यह पार्वती जी को पसंद नहीं था। इसलिए पार्वती जी की सखियां उन्हें भगाकर जंगल में लेकर चली गयीं। इसलिए इस व्रत का हरितालिका नाम पड़ा। चूकि, पार्वती जी ने कुंवारी अवस्था में इस व्रत को किया था। इसलिए इस व्रत को कुंवारी कन्याएं भी अच्छे वर के लिए करती हैं।

 

 

 

 

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