श्रीगणेश जी को एकदंत क्यों कहा जाता है, जानिए इस रोचक कथा के बारे में

 

स्टार एक्सप्रेस डिजिटल : आज गणेश चुतर्थी है। यह त्योहार भगवान गणेश के जन्मदिन के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन, भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। गणेशजी को सभी देवताओं में प्रथम पूजनीय माना गया है। कोई भी शुभ कार्य करने से पहले सबसे पहले गणेश जी का नाम लिया जाता है। भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष के दौरान भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इसलिए हर वर्ष यह पर्व भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को बहुत आस्था के साथ मनाया जाता है।

 

 

 

इस शुभ अवसर पर आप अपने दोस्तों और करीबियों को गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएं दे सकते हैं।

गणेश की ज्योति से नूर मिलता हैं
सबके दिलो को सुरूर मिलता हैं
जो भी जाता हैं गणेश के द्वार
कुछ न कुछ उन्हें जरूर मिलता हैं

 

 

गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं
सब शुभ कारज में पहले पूजा तेरी,
तुम बिना काम ना सरे, अरज सुन मेरी।
रिद्धी सिद्धी को लेकर करो भवन में फेरी
करो ऐसी कृपा नित करूँ मैं पूजा तेरी।

 

 

गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएं!
भक्ति गणपति। शक्ति गणपति।
सिद्दी गणपति, लक्ष्मी गणपति
महा गणपति, देवों में श्रेष्ठ मेरे गणपति
गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं
भगवान श्री गणेश की कृपा,
बनी रहे आप पर हर दम।
हर कार्य में सफलता मिले,
जीवन में न आए कोई गम।
गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं

 

 

1, 2, 3, 4, गणपति की जय जयकार।
5, 6, 7, 8, गणपति है सबके साथ।
गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं

 

 

 

सुख करता जय मोरया,
दुख हरता जय मोरया।
कृपा सिन्धु जय मोरया,
बुद्धि विधाता मोरया।
गणपति बप्पा मोरया,
मंगल मूर्ती मोरया।
गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं
पग में फूल खिले, हर ख़ुशी आपको मिले,
कभी न हो दुखों का सामना,
यही मेरी गणेश चतुर्थी की शुभकामना।

 

 

 

भगवान गणेश को गजानन, बप्पा, विघ्नहर्ता या एकदंत भी कहा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर श्रीगणेश एकदंत क्यों कहलाए। जानिए इस रोचक कथा के बारे में।

 

 

गजानन की कथा-

माता पार्वती स्नान के लिए चली गईं और उन्होंने द्वार पर गणेश जी को बैठा दिया। माता पार्वती ने गणेश जी से कहा था कि जब तक उनकी इजाजत न हो, वह किसी को अंदर न आने दें। तभी वहां पर भगवान शिव का आगमन हुआ। भगवान शिव ने प्रवेश की कोशिश की तो गणेश जी ने उन्हें रोक दिया। इस बात से क्रोधित होकर भगवान शिव ने गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया। जब माता पार्वती बाहर निकलीं तो यह देखकर व्याकुल हो उठीं और उन्होंने भगवान शिव से गणेश जी को बचाने के लिए कहा। तब भगवान शिव ने गणेश जी को हाथी का सिर लगा दिया।

 

 

 

परशुराम ने तोड़ दिया था गणेशजी का एक दांत-
भगवान शंकर और माता पार्वती अपने कक्ष में विश्राम कर रहे थे। उन्होंने कहा कि किसी को भी न आने दें। तभी भगवान शिव से मिलने के लिए परशुराम जी आए। लेकिन गणेश जी से भगवान शिव से मिलने से इनकार कर दिया। इस पर परशुराम जी को गुस्सा आ गया और उन्होंने अपने फरसे से गणेश जी का एक दांत तोड़ दिया।

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