जानिए क्या है शरद पूर्णिमा की पौराणिक कथा औऱ मान्यताएं

डेस्क. शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार ये आश्विन मास की पूर्णिमा को मनायी जाती है। आइये जानें इसकी कथा क्‍या है।

पूजा के समय पढ़ें कथा

आज शरद पूर्णिमा पूरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाई जा रही है। इस दिन मुख्‍य रूप से स्‍त्रियां अपनी संतान की शुभेच्‍छा के लिए इस व्रत को करती है। इसीलिए इसकी कथा भी संतान की प्राप्‍ति और उसकी रक्षा से संबंधित है। पूजा करते समय इस व्रत को करने वाली महिलाओं ये कथा पढ़ने या सुनने के लिए कहा जाता है। आइये जानें क्‍या है शरद पूर्णिमा की कथा।

इस प्रकार है कथा

शास्‍त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा व्रत की पौराणिक कथा इस प्रकार है। एक नगर में एक साहुकार और उसकी दो पुत्रियां रहती थीं। दोनो पूर्णिमा का व्रत रखती थीं, जहां बड़ी पुत्री व्रत पूरा करती थी वहीं छोटी पुत्री व्रत को बीच में ही अधूरा छोड़ देती थी। इसके परिणामस्‍वरूप छोटी पुत्री की सन्तान पैदा होते ही मर जाती थी। जब उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो इसी कारण तुम्हारी सन्तान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी सन्तान जीवित रह सकती है।

पंडितों की सलाह पर उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। इसके बाद उसके यहां बेटा हुआ परन्तु वो शीघ्र ही मर गया। तब उसने लड़के की देह को पीढ़े यानी पाटे पर लिटाकर कपड़े से ढंक दिया। फिर बडी बहन को बुला कर लाई बैठने के लिए वही पीढ़ा दिया। जैसे ही बडी बहन जब पीढ़े पर बैठने लगी तो उसका घाघरा बच्चे की मृत देह से छू गया और वो जीवित हो कर रोने लगा। पटरे पर बच्‍चे की देह देख कर बड़ी बहन बोली कि तू मुझे कंलक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता, तब छोटी बहन ने बताया कि यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।

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