तो इस वजह से आज भी प्यार के मामले में लिया जात हैं हीर-रांझा का नाम

हम सभी प्यार के लिए लैला-मजनू, हीर-रांझा, सस्सी-पुन्नू और सोनी-महिवाल के अफसाने बचपन से ही सुनते आ रहे हैं. कभी भी अगर अटूट प्रेम और त्याग की बात की जाती है तो सबसे पहले इन्हीं का नाम लिया जाता है.

तब भारत और पाकिस्तान एक ही देश हुआ करते थे और वहीं चिनाब नदी के किनारे तख्त हजारा नामक गांव हुआ करता था. इस गांव में रांझा जनजाति के जाट परिवार में एक लड़के का जन्म हुआ. प्‍यार से इस लड़के का नाम रांझा रखा गया. रांझा दरअसल तीन बड़े भाई के बाद जन्मा इस परिवार का सबसे छोटा बेटा था, रांझा बड़ा हुआ और उसकी किस्मत ने करवट ली.

सभी भाइयों की शादी हुई और घर में गृह क्लेश बढ़ता गया. इन सबसे उकता कर एक दिन रांझा ने अपना घर छोड़ दिया और यहां वहां भटकने लगा. भटकते भटकते हुए वह हीर के गांव ‘झंग’ पंजाब जो अब पाकिस्तान में है, और उसने भी रांझा को देखते ही उसे अपना दिल दे बैठी. हीर को हमेशा यह चिंता रहती थी कि रांझा कहीं चला ना जाए इसीलिए हीर ने रांझा को अपने पिता से कहकर चरवाहे का काम दिलवा दिया. हीर और रांझा दोनों छिप छिप कर मिलने लगे.

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