Sultanpur News: शांति शिक्षा से विश्व में सकारात्मक वातावरण विकसित करना चाहिए- डॉ संतोष अंश

वर्तमान वैश्विक परिवेश में शांति शिक्षा की उपादेयता विषय पर संगोष्ठी का आयोजन

स्टार एक्सप्रेस/संवाददाता

सुल्तानपुर । राणा प्रताप स्नातकोत्तर महाविद्यालय के बी एड विभाग ने बीएड द्वितीय वर्ष के विद्यार्थियों हेतु एक विद्यार्थी संगोष्ठी का आयोजन किया ।जिसका विषय वर्तमान वैश्विक परिवेश में शांति शिक्षा की उपादेयता रखा गया था। इस संगोष्ठी के मुख्य वक्ता और विषय विशेषज्ञ बीएड के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ संतोष कुमार सिंह अंश ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि वर्तमान दौर में हम एक वैश्वीकृत दुनिया में रह रहे हैं। यह दुनिया एक गाँव के रूप में तब्दील हो गई है जिसे मैकलुहान ने “ग्लोबल विलेज” की संज्ञा दी है। एक प्रक्रिया और प्रवाह के रूप में वैश्वीकरण ने दुनिया को एक दूसरे से जोड़ते हुए अंतरनिर्भरता को बढ़ावा दिया है।

वैश्वीकरण के इस दौर में युद्ध, असंतोष, अवसाद, पलायन, पर्यावरणीय असंतुलन संपूर्ण विश्व के समक्ष प्रमुख चुनौती है। इसलिए वर्तमान विश्व की एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता शांति एवं भाईचारे की स्थापना करना है। आज वैश्विक शांति संपूर्ण विश्व की आवश्यकता है। यह एक दिन में संभव नहीं हो सकता। इसके लिए संपूर्ण विश्व को अपने निजी स्वार्थों का त्याग करते हुए मानवता को साध्य बनाना होगा। ‛विश्व नागरिकता’ की अवधारणा को साकार करते हुए मानव हितों के साथ-साथ प्रकृति का भी संरक्षण करना होगा। वर्तमान विश्व युद्ध, संघर्ष, पलायन, महामारी एवं पर्यावरण संकट जैसी अनगिनत समस्याओं का सामना कर रहा है।

वर्तमान विश्व को सशंकित दृष्टि से देखते हुए इतिहासकार युवाल नोआ हरारी अपनी पुस्तक ‛21 Lessons for the 21st Century’ में कहते हैं कि, अपनी प्रजाति को संगठित करने के लिए हमने मिथक रचे। खुद को शक्तिशाली बनाने के लिए हमने प्रकृति को वश में किया। अपने विचित्र उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हम जीवन की पुनर्रचना कर रहे हैं। लेकिन क्या हम अब भी खुद को जान पाए हैं या हमारे आविष्कार हमें अप्रासंगिक बना देंगे? वैश्विक शांति स्थापित करने में भारत सदैव अग्रणी देशों में शामिल रहा है। प्राचीन काल से ही शांति एवं सद्भाव भारतीय संस्कृति की मूल विशेषताएं रही हैं। भारत अनेक धर्मो की जन्मस्थली है।

इन धर्मों ने दुनिया भर में शांति एवं मानवता का संदेश दिया। “वसुधैव कुटुंबकम” की अवधारणा भारत की प्प्रमुख विशेषता रही है। शिक्षा जीविकोपार्जन और संतोषजनक जीवन जीने का सबसे अच्छा तरीका है। हालाँकि, इसका एक और मकसद भी है। शांति शिक्षा जीविकोपार्जन की अवधारणा से परे है। यह छात्रों को सिखाता है कि दुनिया में सद्भाव और शांति कैसे बनाए रखें और आलोचनात्मक और तार्किक सोच रखें। शांति शिक्षा की मुख्य अवधारणा लोगों को शांति स्थापना के महत्व से अवगत कराना और एक सकारात्मक वातावरण विकसित करना है।

हरेक देश के अपने नागरिकों को शांति की शिक्षा दे। तभी विश्व शांति का सपना साकार हो सकता है। संगोष्ठी में शिवानी अग्रहरी, प्रिया पाण्डेय, विशाल गुप्ता, प्रभात कुमार सिंह, रंजू मिश्रा, आदित्य तिवारी ,ज्योति तिवारी ,आनंद मिश्रा, श्रद्धा तिवारी, अंजली गुप्ता, सौम्या साहू आदि ने विचार प्रस्तुत किये। संगोष्ठी का संचालन प्राची कसौंधन ने किया। इस संगोष्ठी में बी एड द्वितीय वर्ष के विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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