जिसने कांग्रेस के खिलाफ ठानी थी रार, उसी के मंत्र को राहुल गांधी ने बनाया हथियार क्यों?

राहुल गांधी ने कर्नाटक की एक चुजवी सभा में नारा दिया, जितनी आबादी, उतना हक ... यानी इस देश में समुदाय की जितनी आबादी है, उसे उसी अनुपात में हक दिया जाना चाहिए

स्टार एक्सप्रेस/संवाददाता

डेस्क:  देशभर में गैर-कांग्रेसवाद की अलख जगानेवाले समाजवादी चिंतक और नेता राम मनोहर लोहिया नारा दिया करते थे “पिछड़ा पावे सौ में साठ।” उन्हीं की तर्ज पर बाद में बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक रहे कांशीराम कहा करते थे, “जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी” यानी ये नेता पिछड़ों, दलितों और वंचितों को शासन सत्ता से लेकर सरकारी योजनाओं और नौकरियों में भागीदारी दिलाने के लिए उनकी आबादी के अनुसार उन्हें आरक्षण देने की वकालत किया करते थे।

यहां यह प्रासंगिक है कि इन दोनों नेताओं ने तब कांग्रेस की सरकारों के खिलाफ इन नारों के जरिए राजनीतिक लड़ाई लड़ी थी और अब उसी कांग्रेस के नेता इन नेताओं के इसी नारे के सहारे बीजेपी के  खिलाफ सियासी लड़ाई लड़ने जा रहे हैं।

जातीय जनगणना की मांग

दरअसल, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने पिछले दिनों कर्नाटक की एक चुनावी सभा में नारा दिया, “जितनी आबादी, उतना हक।” यानी इस देश में जिस जाति या समुदाय की जितनी आबादी है, उसे उसी अनुपात में हक दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही राहुल गांधी ने जातीय जनगणना कराने और आरक्षण की सीमा बढ़ाने की भी मांग की है।

10 मई को होने वाले कर्नाटक विधानसभा चुनावों के प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से आरक्षण की 50 फीसदी सीमा को हटाने की मांग की है। कांग्रेस नेता ने कहा कि पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों की जितनी संख्या है, उसके हिसाब से उन्हें आरक्षण दिया जाना चाहिए।

कर्नाटक का जातीय गणित

कर्नाटक में जातीय और धार्मिक आंकड़ों पर गौर करें तो सबसे ज्यादा 84 फीसदी हिन्दू, 12.92 फीसदी मुस्लिम और 1.87 फीसदी ईसाई और 0.72 फीसदी जैन समुदाय के लोग है जातीय हिस्सेदारी में सबसे ज्यादा 54 फीसदी ओबीसी की आबादी है। इसके बाद 17 15 फीसदी अनुसूचित जाति और 16.95 (करीब 7) फीसदी अनुसूचित जनजाति की आबादी है।

एक तीर से दो शिकार

चुनावों से ऐन पहले जातीय जनगणना और आबादी के अनुसार उन्हें हक देने की बात कहकर राहुल गांधी ने एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश की है। पहले तो वह बीजेपी और नरेंद्र मोदी को ओबीसी और दलित विरोधी करार देने की कोशिश की है, जो इस समुदाय की न तो गणना करवा रहे हैं और न ही उनकी आबादी के अनुसार उन्हें आरक्षण दिलवा पा रहे हैं।

दूसरी तरफ राहुल ने यह कहकर बड़ा दांव चला है कि अगर उनकी सरकार आई तो वह जातीय जनगणना भी कराएंगे और आबादी के अनुरूप आरक्षण भी लागू करेंगे। रोहुल ने कहा कि उनकी पार्टी की सरकार ने 2011 की जनगणना में जातीय आंकड़े इकट्ठे करवाए हैं लेकिन मोदी सरकार उसे सार्वजनिक नहीं कर रही है।

2024 के लिए भी लंबी लकीर

माना जा रहा है कि राहुल गांधी ने अपने चिर प्रतिद्वंद्वियों के सियासी मंत्र को अपनाकर 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए भी लंबी लकीर खींचने की कोशिश की है और उसे कमंडल बनाम मंडल बनाने की क्षेत्रीय दलों की राजनीति को आगे बढ़ाने में कांग्रेस का साथ देने का संकल्प दोहराया है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Back to top button