बिहार मे राजद और कांग्रेस की दोस्ती खत्म ?

स्टार एक्सप्रेस डिजिटल : बिहार में महागठबंघन (Bihar Grand alliance) की गांठ लगातार ढीली पड़ने लगी है। महागठबंधन में शामिल दलों के दिल अब नहीं मिल रहे हैं। नौबत ये आ गई है कि कांग्रेस (Congress) बिहार विधानसभा उपचुनाव में एकला चलो की राह पर है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के दोनों सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर दिए जाने के बाद आज कांग्रेस भी अपने प्रत्याशियों के नाम का ऐलान कर सकती है। कांग्रेस पप्पू यादव शरणम गच्छामि की तैयारी में है।

महागठबंधन में उत्पन्न हुआ ये रार कोई एक दिन में पैदा नहीं हुआ है। इसकी शुरुआत कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल होने के बाद ही शुरू हो गई थी। अब जब बिहार में उपचुनाव हो रहा है तो महागठबंधन का तकरार सरेआम हो गया है। लेकिन इससे पहले जिस तरह आरजेडी नेताओं के बयान आ रहे थे और वो कांग्रेस पर निशाना साध रहे थे, उससे ये तो तय हो गया था कि महागठबंधन में सब ऑल इज वेल नहीं है। अब आरजेडी के दोनों सीटों पर प्रत्याशी उतारने के बाद कांग्रेस और आरजेडी का टकरार खुलकर सामने आ गया है।

इसकी शुरुआत तब हो गई थी जब कन्हैया अपनी पुरानी पार्टी छोड़कर कांग्रेसी हो गए। बिहार के महागठबंधन में RJD मुख्य दल है, जिसमें कांग्रेस, CPI, CPM और माले शामिल है। जब CPI के फायर ब्रांड नेता कन्हैया कुमार कांग्रेस में शामिल हुए, तो महागठबंधन में टकरार सामने आ गई। आरजेडी कन्हैया के कांग्रेस में जाने को लेकर सहज नहीं थी, यह आरजेडी नेता के बयान से तब स्पष्ट दिखा जब पार्टी के प्रवक्ता और विधायक भाई वीरेन्द्र ने कहा कन्हैया कुमार कौन हैं वो उन्हें नहीं जानते हैं।

तो वहीं शिवानंद तिवारी ने तंज कसा था और कन्हैया को अध्यक्ष बनाने की सलाह दी थी। कहा जाता है कि यह स्थिति तब पैदा हुई जब कांग्रेस ने गठबंधन धर्म का पालन नहीं किया और गठबंधन में शामिल दल के नेता को तोड़ कर कांग्रेसी बना लिया। जिसका बदला आरजेडी ने कुशेश्वर स्थान और तारापुर सीट पर अपने उम्मीदवार उतार कर लिया है और अब कांग्रेस भी आर-पार के मुड में है।

एकतरफ जहां कांग्रेस पर आरोप लग रहा हैं कि उन्होंने कन्हैया कुमार को पार्टी में शामिल कराकर गठबंधन धर्म का पालन नहीं किया है। लेकिन इसपर राजनीतिक जानकार एकमत नहीं है। वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी ने बताया कि ऐसा हमेशा से होता रहा है। बिहार में संजय झा जो पहले बीजेपी नेता थे अब जेडीयू में शामिल हो गए हैं। तो वहीं सम्राट चौधरी ने भी हम छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था।

ऐसा होता रहा है कि पार्टियां अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए दूसरे दलों से नेता आयात करती है। इसलिए यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। बड़ा मुद्दा यह है कि तेजस्वी यादव कन्हैया कुमार को पसंद नहीं करते हैं। और इसकी एक वजह तेजस्वी को कन्हैया से असुरक्षा की भावना हो सकती है। पहले भी लोकसभा चुनाव में कन्हैया के नाम पर बात नहीं बनी थी, तो वहीं विधानसभा चुनाव में सात रहकर भी दोनों नेता एकमंच पर साथ नहीं दिखे थे। अब मामला जो भी हो यह तय है कि महागठबंधन में कन्हैया इफैक्ट साफ दिखने लगा है।

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