आयुर्वेद में भोजन सादा तथा सम-अनुपात स्वास्थ्यवर्द्धक वाला भोजन …

आयुर्वेद में भोजन का वर्गीकरण वात्, पित्त, कफ के रूप में ही नहीं किया गया है, बल्कि प्रकृति-सत्व, रजस और तमस के रूप में भी किया गया है। अत्यधिक पकाया हुआ और अधिक मसालों वाला भोजन तामसिक कहलाता है। मन की तामसिक वृत्तियों के साथ एवं क्रोध और झुंझलाकर बनाया गया भोजन खाने वाले में तामसिकता उत्पन्न करता है।
सादा तथा सम-अनुपात वाला स्वास्थ्यवर्द्धक भोजन ही सात्विक गुणवाला होता है। जो पोषक भोजन गतिशीलता और ऊर्जा दे किंतु विषय वासना जगाए, उसे रजस गुण प्रधान राजसिक कहते हैं। राजसिक भोजन में मसाले और जड़ी-बूटियां डालने से वह सुस्वादु तथा अधिक पौष्टिक हो जाता है। इन तीनों गुणोंवाले भोजन की कोई सुनिश्चित विभाजक रेखा नहीं होती।ऐसे भोजन के मिश्रित गुण हो सकते हैं या विभिन्न अनुपातों में हो सकते हैं, जो उसे तैयार करने की विधि एवं प्रक्रिया पर निर्भर करते हैं। उदाहरण के लिए, अधिक पकाया या अधिक मसालेवाला भोजन बनने के बहुत समय बाद खाया जाएगा तो वह तथा अधिक पका भोजन शरीर पर तामसिक प्रभाव डालेगा।

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