स्विट्जरलैंड : गौ माता का सींग बना एक राष्ट्रीय मुद्दा
हम आपको Switzerland लेकर चलते हैं। Switzerland में कुछ ऐसा होने वाला है, जो हिंदुस्तान में धर्म की पॉलिटिक्स व गो रक्षा के नाम पर अपनी दुकानदारी चलाने वालों को नैतिकता की एजुकेशन दे सकता है।
इस रविवार यानी 25 नवंबर को Switzerland में एक जनमत संग्रह होने वाला है। व ये Referendum वहां रहने वाले लोगों के लिए नहीं, बल्कि गायों के हितों व उनके अधिकार के लिए होगा। सवाल ये है, कि ऐसा क्यों हो रहा है? व इसका जवाब है – गौ माता के सींगों की वजह से। ये बात अपने आप में दंग करने वाली है, कि इस वक्त Switzerland में मौजूद सिर्फ 10 फीसदी गायें ऐसी हैं, जिनके सिर पर सींग हैं। वहां पर क़रीब तीन चौथाई गायें ऐसी हैं, जिनके सिर पर या तो सींग नहीं है। या फिर वो बिना सींग के ही पैदा होती हैं। Switzerland के किसान सिर्फ इसलिए गौ माता के सींगों को जला देते हैं, ताकि वो जानवरों को कम से कम स्थान में सरलता से रख सकें।
गाय के सींगों को जलाने की प्रक्रिया बहुत ज्यादा महंगी होती है। व इससे उन्हें तकलीफ भी बहुत ज़्यादा होती है। सींग को जलाने से पहले गौ माता को Anaesthesia देकर बेहोश किया जाता है। व फिर बाद में Painkillers दिए जाते हैं। लेकिन ये Painkillers उनका दर्द कम नहीं करते। उदाहरण के तौर पर गौ माता के 20 प्रतिशत से ज़्यादा बछड़े, सींग जलाए जाने के कई महीने बाद तक, दर्द सहन करते हैं। ऐसा करने के पीछे एक सामान्य दलील ये दी जाती है, कि जिन गायों के सींग होते हैं, वो बेहद उग्र होती हैं। हालांकि, गौ माता के हितों की बात करने वाले लोगों की दलीलें बिल्कुल अलग है। उनका कहना है, कि सींग गौ माता के बॉडी का एक अहम भाग है। इसकी मदद से गौ माता ना सिर्फ एक दूसरे को पहचान पाती हैं। बल्कि आपस में संवाद भी करती हैं। व सींग की मदद से गायों की पाचन क्षमता व बॉडी का तापमान भी सामान्य रहता है। हिंदुस्तान में गौ रक्षा का मुद्दा बहुत विवादित रहा है। लेकिन Switzerland में गौ माता के सींगों की रक्षा के लिए क़रीब 9 सालों से अभियान चल रहा है।
और इसमें अंतिम निर्णय की तारीख 25 नवंबर 2018 तय कर दी गई है। उस दिन वहां जनमत संग्रह होगा। वहां के किसान चाहते हैं, कि Switzerland की गवर्नमेंट अपने संविधान में परिवर्तन करके, ऐसे किसानों के लिए Subsidy का प्रावधान करे, जो अपनी गायों के सींग नहीं जलाते हैं। वहां ऐसा माना जाता है, कि गायों के सींग ना जलाने से किसानों पर आर्थिक बोझ बढ़ता है। व इसीलिए गवर्नमेंट से इस बोझ को कम करने की मांग की जा रही है। हालांकि 9 सालों से चल रही इस मुहिम को वहां की गवर्नमेंट का समर्थन हासिल नहीं है।
Switzerland की गवर्नमेंट का कहना है, कि अगर इस प्रकार की आर्थिक मदद दी गई, तो गवर्नमेंट पर 215 करोड़ रुपये का अलावा बोझ पड़ेगा। जब वहां की राजनीतिक Lobby ने किसानों की मांगें नहीं सुनीं, तो गायों के हित के लिए 66 वर्ष के एक किसान को आगे आना पड़ा। व उसने Cow Horn Initiative की आरंभ की। Switzerland की ताज़ा स्थिति ये है, कि वहां पर गौ माता का सींग एक राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है। इस पर रविवार को जो जनमत संग्रह होगा उसमें वहां के 53 लाख लोग भाग लेंगे। सितम्बर 2018 के बाद ये तीसरा मौका होगा, जब वहां के लोग अपनी बात कहने के लिए जनमत संग्रह में शामिल होंगे।
वहां का लोकतंत्र संसार के दूसरे राष्ट्रों के लोकतंत्र से थोड़ा अलग है। वहां का वोटर 5 वर्ष में एक बार वोट देकर शांत नहीं बैठ जाता। बल्कि वो गवर्नमेंट के हर बड़े निर्णय की समीक्षा अपने वोटों के ज़रिए करता है। वहां का एक सामान्य वोटर एक वर्ष में क़रीब 4 जनमत संग्रह में भाग लेता है। गवर्नमेंट द्वारा प्रस्तावित 15 Bills के लिए वोटिंग करता है। साल 1848 से लेकर अब तक, वहां के लोग 600 से ज़्यादा प्रस्तावों के लिए 300 से ज़्यादा बार अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर चुके हैं। Switzerland जैसे राष्ट्रों में बात-बात पर जनमत संग्रह कराया जाता है।
जबकि हिंदुस्तान में हर पांच वर्ष में एक बार चुनाव होता है। व लोगों की राय भी एक ही बार पूछी जाती है। ये राय मुद्दों के बारे में नहीं होती, बल्कि नेताओं व पार्टियों के बारे में होती है।धर्म व जाति के नाम पर यहां लोगों को गुमराह कर दिया जाता है। व फिर पांच सालों तक नेताओं को अपनी मनमानी करने की छूट मिल जाती है। आज गौ माता के सींग की रक्षा के लिए अपनी आवाज़ बुलंद करने वाले Switzerland के किसान, हिंदुस्तान के लोगों को वास्तविक लोकतंत्र की परिभाषा समझाएंगे।