यह साधारण सा युवक, जानिये कैसे बना ‘दी मोस्ट वांटेड क्रिमिनल’

90 के दशक में क्राइम की संसार में एक ऐसा नाम जिसके खौफ से पूरा यूपी कांपता था पूर्वी उत्‍तर प्रदेश के गोरखपुर का 25-26 वर्ष का शार्प-शूटर  ‘सुपारी किलर’ श्रीप्रकाश शुक्ला से पुलिस के साथ क्रिमिनल भी खौफ खाते थे श्रीप्रकाश  उसके पास उपस्थित एके-47 दहशत का दूसरा नाम था इस माफिया को पकड़ने के लिए ही उत्तर प्रदेश में एसटीएफ का गठन हुआ था एसटीएफ को भी माफिया को अंजाम तक पहुंचाने के लिए नाको चने चबाने पड़े थे

श्रीप्रकाश शुक्ला मात्र 5 वर्ष के अंदर एक के बाद एक वारदात को अंजाम देकर नंबर वन बदमाश बन गया था शुक्ला को ‘जिगरवाला बदमाश’ माना जाता था श्रीप्रकाश शुक्ला की आम पहलवान से बदमाश बनने तक का सफर किसी हिन्दी फिल्म की कहानी से कम नहीं है

20 वर्ष की आयु में किया था पहला मर्डर
श्रीप्रकाश शुक्ला का जन्म गोरखपुर के ममखोर गांव में हुआ था उसके पिता एक स्कूल में शिक्षक थे वह अपने गांव का प्रसिद्ध पहलवान हुआ करता था वर्ष 1993 में श्रीप्रकाश शुक्ला ने अपनी बहन को देखकर सीटी बजाने वाले राकेश तिवारी नामक एक आदमी की मर्डर कर दी थी 20 वर्ष के युवक श्रीप्रकाश के ज़िंदगी का यह पहला जुर्म था ऐसा बोलाजाता है कि इस हत्या के बाद वह बैंकॉक भाग गया था लेकिन, पैसे की तंगी के चलते वह ज्यादा दिन वहां नहीं रह सका  हिंदुस्तान लौट आया देश आने के बाद उसने मोकामा (बिहार) का रुख किया  सूबे के सूरजभान गैंग में शामिल हो गया

1997 में की थी बाहुबली राजनेता की हत्या
साल 1997 में लखनऊ में बाहुबली राजनेता वीरेन्द्र शाही की श्रीप्रकाश शुक्ला ने मर्डर कर दी थी माना जाता है कि शाही के विरोधी हरिशकंर तिवारी के इशारे पर उसने यह किया थावह चिल्लुपार विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहता था इसके बाद तो उत्तर प्रदेश में श्रीप्रकाश शुक्ला का आतंक कायम हो गया

1998 में दी सबसे बड़ी वारदात को अंजाम
श्रीप्रकाश शुक्ला को खौफ की संसार में वास्तविक शौहरत बिहार के मंत्री हत्याकांड से मिली श्रीप्रकाश शुक्ला ने 13 जून 1998 को पटना स्थित इंदिरा गांधी अस्पताल के बाहर बिहार सरकार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद को उनके सुरक्षाकर्मियों के सामने ही गोलियों से भून दिया था श्रीप्रकाश अपने तीन साथियों के साथ लाल बत्ती कार में आया  एके-47 राइफल से हत्याकांड को अंजाम देकर फरार हो गया था

शुक्ला को पकड़ने के लिए बनी थी STF
श्रीप्रकाश के जब ताबड़तोड़ क्राइम से सरकार  पुलिस के लिए सिरदर्द गए तो  उसके खात्मे का मन बना लिया था लखनऊ सचिवालय में उत्तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री, गृहमंत्री  डीजीपी की एक मीटिंग हुई इसमें अपराधियों से निपटने के लिए स्‍पेशल फोर्स बनाने की योजना तैयार हुई 4 मई 1998 को उत्तर प्रदेश पुलिस के तत्‍कालीन एडीजी अजयराज शर्मा ने प्रदेश पुलिस के बेहतरीन 50 जवानों को छांट कर स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) बनाई इस फोर्स का पहला टास्क था श्रीप्रकाश शुक्ला को जिंदा या मुर्दा

मुख्यमंत्री को मारने की ली थी सुपारी
श्रीप्रकाश ने उत्तर प्रदेश पुलिस की नींद तो तब उड़ा दी जब, उसने उस समय सूबे के सीएम कल्याण सिंह (अब राजस्थान के राज्यपाल) की मर्डर का सुपारी (ठेका) ली थी 5 करोड़  में मुख्यमंत्री की मर्डर का सौदा तय हुआ था इसी के साथ गोरखपुर का नौसिखिया शार्प-शूटर देश का ‘करोड़पति सुपारी-किलर’  उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए ‘चुनौती’ बन गया

1997 में हुआ पहली एनकाउंटर
श्रीप्रकाश शुक्ला से पुलिस की पहली एनकाउंटर 9 सितम्बर 1997 को लखनऊ के जनपथ बाजार में हुई थी इस एनकाउंटर में श्रीप्रकाश शुक्ला पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ पाया था इसमें एक एक सिपाही भी शहीद हो गया था

दिल्ली में थी गर्लफ्रेंड
श्रीप्रकाश शुक्ला की एक गर्लफ्रेंड भी थी जो दिल्ली में रहती थी श्रीप्रकाश शुक्ला उससे बात करता था एसटीएफ को इस बात की जानकारी हो गई थी  उसने उसकी गर्लफ्रेंड का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगाया था इस बात की भनक श्रीप्रकाश को लग गई थी, लेकिन उसके बावजूद प्रेमिका से बात करने के लालच में वह पीसीओ से फोन करता था

ऐसे मारा गया था श्रीप्रकाश शुक्ला
23 सितंबर 1998 को एसटीएफ के प्रभारी अरुण कुमार को मिली कि श्रीप्रकाश शुक्‍ला दिल्‍ली से गाजियाबाद की तरफ आ रहा है श्रीप्रकाश शुक्‍ला की कार जैसे ही वसुंधरा इन्क्लेव पार करती है, अरुण कुमार सहित एसटीएफ की टीम उसका पीछा प्रारम्भ कर देती है उस वक्‍त श्रीप्रकाश शुक्ला को जरा भी संदेह नहीं हुआ कि STF उसका पीछा कर रही है उसकी कार जैसे ही इंदिरापुरम के सुनसान इलाके में दाखिल हुई, एसटीएफ की टीम ने आकस्मित श्रीप्रकाश की कार को ओवरटेक कर उसका रास्ता रोक दिया श्रीप्रकाश शुक्ला को आत्म समर्पण करने को बोला लेकिन वो नहीं माना  फायरिंग प्रारम्भ कर दी पुलिस की जवाबी फायरिंग में श्रीप्रकाश शुक्ला मारा गया इस तरह जुर्म के इस बादशाह की कहानी समाप्त हुई श्रीप्रकाश शुक्ला की मृत्यु के बाद उसका खौफ भले समाप्त हो गया था लेकिन जयराम की संसार में उसके आज भी चर्चे होते हैं

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