यह साधारण सा युवक, जानिये कैसे बना ‘दी मोस्ट वांटेड क्रिमिनल’
श्रीप्रकाश शुक्ला मात्र 5 वर्ष के अंदर एक के बाद एक वारदात को अंजाम देकर नंबर वन बदमाश बन गया था। शुक्ला को ‘जिगरवाला बदमाश’ माना जाता था। श्रीप्रकाश शुक्ला की आम पहलवान से बदमाश बनने तक का सफर किसी हिन्दी फिल्म की कहानी से कम नहीं है।
20 वर्ष की आयु में किया था पहला मर्डर
श्रीप्रकाश शुक्ला का जन्म गोरखपुर के ममखोर गांव में हुआ था। उसके पिता एक स्कूल में शिक्षक थे। वह अपने गांव का प्रसिद्ध पहलवान हुआ करता था। वर्ष 1993 में श्रीप्रकाश शुक्ला ने अपनी बहन को देखकर सीटी बजाने वाले राकेश तिवारी नामक एक आदमी की मर्डर कर दी थी। 20 वर्ष के युवक श्रीप्रकाश के ज़िंदगी का यह पहला जुर्म था। ऐसा बोलाजाता है कि इस हत्या के बाद वह बैंकॉक भाग गया था। लेकिन, पैसे की तंगी के चलते वह ज्यादा दिन वहां नहीं रह सका व हिंदुस्तान लौट आया। देश आने के बाद उसने मोकामा (बिहार) का रुख किया व सूबे के सूरजभान गैंग में शामिल हो गया।
1997 में की थी बाहुबली राजनेता की हत्या
साल 1997 में लखनऊ में बाहुबली राजनेता वीरेन्द्र शाही की श्रीप्रकाश शुक्ला ने मर्डर कर दी थी। माना जाता है कि शाही के विरोधी हरिशकंर तिवारी के इशारे पर उसने यह किया था।वह चिल्लुपार विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहता था। इसके बाद तो उत्तर प्रदेश में श्रीप्रकाश शुक्ला का आतंक कायम हो गया।
1998 में दी सबसे बड़ी वारदात को अंजाम
श्रीप्रकाश शुक्ला को खौफ की संसार में वास्तविक शौहरत बिहार के मंत्री हत्याकांड से मिली। श्रीप्रकाश शुक्ला ने 13 जून 1998 को पटना स्थित इंदिरा गांधी अस्पताल के बाहर बिहार सरकार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद को उनके सुरक्षाकर्मियों के सामने ही गोलियों से भून दिया था। श्रीप्रकाश अपने तीन साथियों के साथ लाल बत्ती कार में आया व एके-47 राइफल से हत्याकांड को अंजाम देकर फरार हो गया था
शुक्ला को पकड़ने के लिए बनी थी STF
श्रीप्रकाश के जब ताबड़तोड़ क्राइम से सरकार व पुलिस के लिए सिरदर्द गए तो उसके खात्मे का मन बना लिया था। लखनऊ सचिवालय में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, गृहमंत्री व डीजीपी की एक मीटिंग हुई। इसमें अपराधियों से निपटने के लिए स्पेशल फोर्स बनाने की योजना तैयार हुई। 4 मई 1998 को उत्तर प्रदेश पुलिस के तत्कालीन एडीजी अजयराज शर्मा ने प्रदेश पुलिस के बेहतरीन 50 जवानों को छांट कर स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) बनाई। इस फोर्स का पहला टास्क था श्रीप्रकाश शुक्ला को जिंदा या मुर्दा।
मुख्यमंत्री को मारने की ली थी सुपारी
श्रीप्रकाश ने उत्तर प्रदेश पुलिस की नींद तो तब उड़ा दी जब, उसने उस समय सूबे के सीएम कल्याण सिंह (अब राजस्थान के राज्यपाल) की मर्डर का सुपारी (ठेका) ली थी। 5 करोड़ में मुख्यमंत्री की मर्डर का सौदा तय हुआ था। इसी के साथ गोरखपुर का नौसिखिया शार्प-शूटर देश का ‘करोड़पति सुपारी-किलर’ व उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए ‘चुनौती’ बन गया।
1997 में हुआ पहली एनकाउंटर
श्रीप्रकाश शुक्ला से पुलिस की पहली एनकाउंटर 9 सितम्बर 1997 को लखनऊ के जनपथ बाजार में हुई थी। इस एनकाउंटर में श्रीप्रकाश शुक्ला पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ पाया था। इसमें एक एक सिपाही भी शहीद हो गया था।
दिल्ली में थी गर्लफ्रेंड
श्रीप्रकाश शुक्ला की एक गर्लफ्रेंड भी थी जो दिल्ली में रहती थी। श्रीप्रकाश शुक्ला उससे बात करता था। एसटीएफ को इस बात की जानकारी हो गई थी व उसने उसकी गर्लफ्रेंड का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगाया था। इस बात की भनक श्रीप्रकाश को लग गई थी, लेकिन उसके बावजूद प्रेमिका से बात करने के लालच में वह पीसीओ से फोन करता था।
ऐसे मारा गया था श्रीप्रकाश शुक्ला
23 सितंबर 1998 को एसटीएफ के प्रभारी अरुण कुमार को मिली कि श्रीप्रकाश शुक्ला दिल्ली से गाजियाबाद की तरफ आ रहा है। श्रीप्रकाश शुक्ला की कार जैसे ही वसुंधरा इन्क्लेव पार करती है, अरुण कुमार सहित एसटीएफ की टीम उसका पीछा प्रारम्भ कर देती है। उस वक्त श्रीप्रकाश शुक्ला को जरा भी संदेह नहीं हुआ कि STF उसका पीछा कर रही है। उसकी कार जैसे ही इंदिरापुरम के सुनसान इलाके में दाखिल हुई, एसटीएफ की टीम ने आकस्मित श्रीप्रकाश की कार को ओवरटेक कर उसका रास्ता रोक दिया। श्रीप्रकाश शुक्ला को आत्म समर्पण करने को बोला लेकिन वो नहीं माना व फायरिंग प्रारम्भ कर दी। पुलिस की जवाबी फायरिंग में श्रीप्रकाश शुक्ला मारा गया। इस तरह जुर्म के इस बादशाह की कहानी समाप्त हुई। श्रीप्रकाश शुक्ला की मृत्यु के बाद उसका खौफ भले समाप्त हो गया था लेकिन जयराम की संसार में उसके आज भी चर्चे होते हैं।