स्टडी में सामने आईं ये बातें कोविड से ठीक होने के दो साल बाद भी लंग्स में आ रही प्रॉब्लम

स्टार एक्सप्रेस/ संवाददाता

 

लंबे समय तक कोरोना से संक्रमित

क्या आप कोरोना से संक्रमित हुए थे? अगर आपका जवाब हां है, तो नई स्टडी आपकी परेशानी बढ़ा सकती है. क्योंकि एक स्टडी में सामने आया है कि कोविड से ठीक होने के दो साल बाद भी फेफड़े पूरी तरह से ठीक नहीं हुए हैं.रेडियोलॉजी’ नाम के एक साइंस जर्नल में पब्लिश हुई इस स्टडी में बताया गया है कि दुनियाभर में 60 करोड़ से ज्यादा लोग कोविड से रिकवर हो चुके हैं, लेकिन फिर भी उनके कुछ अंगों में, खासकर फेफड़ों में लंबे समय तक इन्फेक्शन रह सकता है।

ये स्टडी चीन के वुहान में स्थित मेडिकल कॉलेज ऑफ हुआझोंग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के क्विंग यी और हेशुई शी ने की है।

चीन के वुहान के रिसर्चर्स ने कोविड से ठीक हो चुके मरीजों पर एक स्टडी की है, जिसमें सामने आया है कि रिकवरी के दो साल बाद भी मरीजों के फेफड़ों में कई तरह की समस्याएं सामने आ रहीं हैं ज्यादातर मरीजों को सांस लेने में तकलीफ हो रही है इस स्टडी में और क्या-क्या सामने आया?

इस स्टडी में कोविड से ठीक हो चुके 144 मरीजों को शामिल किया गया था. इसमें 79 पुरुष और 65 महिलाएं थीं, जिनकी औसत उम्र 60 साल थी ये वो मरीज थे जो 15 जनवरी से 10 मार्च 2020 के बीच कोविड से ठीक हुए थे इन लोगों का 6 महीने, 12 महीने और दो साल में तीन बार सीटी स्कैन किया गया थासीटी स्कैन में सामने आया कि कोविड से रिकवर होने के दो साल बाद भी इनके फेफड़ों में कई तरह की परेशानियां थीं. इनके फेफड़ों में फाइब्रोसिस, थिकनिंग,हनीकॉम्बिंग, सिस्टिक चेंज जैसी कई तरह की समस्याएं दिखीं.

स्टडी में क्या पता चला?

स्टडी में पता चला कि 6 महीने बाद 54 फीसदी मरीजों के फेफड़ों में परेशानियां थीं वहीं, दो साल बाद भी 39 फीसदी मरीजों के फेफड़े पूरी तरह ठीक नहीं हुए थे जबकि, 61 फीसदी यानी 88 मरीजों के फेफड़े ठीक थे।

स्टडी के मुताबिक दो साल बाद भी कई मरीजों को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. सामने आया कि दो साल बाद भी 29 फीसदी मरीजों में पल्मोनरी डिफ्यूजन की शिकायत पल्मोनरी डिफ्यूजन का मतलब है कि फेफड़ों में हवा की थैलियां किस तरह से ऑक्सीजन पहुंचा रही हैं।

स्टडी में बताया गया है कि मरीजों में सांस लेने से जुड़ी समस्याएं लंबे समय तक रहीं हालांकि, 6 महीने बाद 30 फीसदी मरीजों में ये समस्या थी, जबकि दो साल बाद ऐसे मरीजों की संख्या घटकर 22 फीसदी हो गई।

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