कोरोना से भारत में हुई लाखो मौतें, जानिये अब तक के एक्टिव केस की संख्या

रणदीप गुलेरिया ने भी रिपोर्ट पर आपत्ति जताई और कहा कि भारत में जन्म और मृत्यु पंजीकरण की बहुत मजबूत प्रणाली है और वे आंकड़े उपलब्ध हैं, लेकिन डब्ल्यूएचओ ने उन आंकड़ों का उपयोग ही नहीं किया है।

स्टार एक्सप्रेस

. भारत के अंदर कोविड-19 महामारी के चलते करीब 47 लाख लोगों की मौत

.जनवरी 2020 से लेकर दिसंबर 2021 के बीच करीब 47 लाख लोगों की मौत हो गई

. कई विकसित देशों की तुलना में भारत की मृत्यु दर सबसे कम है।

लखनऊ. कोरोना से भारत में मौत को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जो रिपोर्ट दी है उसे केन्द्र सरकार ने खारिज कर दिया है। डब्ल्यूएचओ ने अपनी रिपोर्ट में भारत के अंदर कोविड-19 महामारी के चलते करीब 47 लाख लोगों की मौत का अनुमान लगाया है। डब्ल्यूएचओ की तरफ से गुरुवार को जारी रिपोर्ट में यह कहा गया कि जनवरी 2020 से लेकर दिसंबर 2021 के बीच करीब 47 लाख लोगों की मौत हो गई, जबकि आधिकारिक तौर पर दिए गए आंकड़े से करीब 10 गुणा ज्यादा है।

क्यों उठ रहे डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों पर सवाल?

देश के शीर्ष स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने डब्ल्यूएचओ की तरफ से कोरोना या इसके प्रभाव की वजह से भारत में 47 लाख लोगों की मौत का अनुमान लगाने के लिए प्रयुक्त ‘मॉडलिंग’ पद्धति पर सवाल खड़े किए इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वे इस संबंध में वैश्विक स्वास्थ्य निकाय द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण से निराश हैं जो ‘सबके लिए एक ही नीति अपनाने’ के समान है।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक बलराम भार्गव, नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) वी के पॉल और एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया सहित कई विशेषज्ञों ने रिपोर्ट को अस्वीकार्य और दुर्भाग्यपूर्ण बताया। वीके पॉल ने डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा कि भारत वैश्विक निकाय को पूरी विनम्रता से और राजनयिक चैनलों के जरिए, आंकड़ों और तर्कसंगत दलीलों के साथ स्पष्ट रूप से कहता रहा है कि वह अपने देश के लिए अपनाई गई कार्यप्रणाली से सहमत नहीं है।

गुलेरिया ने रिपोर्ट पर जताई आपत्ति

नीति आयोग के सदस्य ने कहा, “…अब जबकि सभी कारणों से अधिक मौतों की वास्तविक संख्या उपलब्ध है, केवल मॉडलिंग आधारित अनुमानों का उपयोग करने का कोई औचित्य नहीं है।’’ वीके पॉल ने कहा, “… दुर्भाग्य से, हमारे लगातार लिखने, मंत्री स्तर पर संवाद के बावजूद, उन्होंने मॉडलिंग और धारणाओं पर आधारित संख्याओं का उपयोग चुना है।” उन्होंने कहा कि भारत जैसे आकार वाले देश के लिए इस तरह की धारणाओं का इस्तेमाल किया जाना और “हमें खराब तरीके से पेश करना वांछनीय नहीं है।”

राष्ट्रीय टीकाकरण तकनीकी परामर्श समूह (एनटीएजीआई) के अध्यक्ष एन के अरोड़ा ने रिपोर्ट को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि कई विकसित देशों की तुलना में भारत की मृत्यु दर (प्रति दस लाख) सबसे कम है। बलराम भार्गव ने कहा, “महत्वपूर्ण बात यह है कि जब कोविड की मौतें हुई थीं, तो उस समय हमारे यहां मृत्यु की परिभाषा नहीं थी। यहां तक ​​कि डब्ल्यूएचओ के पास भी इस संबंध में कोई परिभाषा नहीं थी। तो वहीं रणदीप गुलेरिया ने भी रिपोर्ट पर आपत्ति जताई और कहा कि भारत में जन्म और मृत्यु पंजीकरण की बहुत मजबूत प्रणाली है और वे आंकड़े उपलब्ध हैं, लेकिन डब्ल्यूएचओ ने उन आंकड़ों का उपयोग ही नहीं किया है।

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