तरकश से इंसेफेलाइटिस का तीर हुआ गायब, CM योगी लूट रहे वाहवाही
स्टार एक्सप्रेस
डेस्क. पूर्वी यूपी में विधानसभा चुनाव का पारा चढ़ा हुआ है। सत्ता पक्ष और विपक्ष एक-दूसरे पर हमलावर हो रहे हैं। हालांकि चार दशक बाद पहली बार विपक्ष के तरकश से इंसेफेलाइटिस का तीर गायब है। अब उल्टे इस तीर से सत्ता पक्ष निशाना साध रहा है। इसकी वजह है बीते पांच साल में इंसेफेलाइटिस के रोकथाम के लिए हुए प्रयास।
मासूमों की जान लेने वाली इस बीमारी की रफ्तार प्रदेश सरकार के प्रयासों से थम गई है। 2017 से इस बीमारी से प्रभावित मरीजों और मौतों में काफी कमी आई है। इसके पूर्व जहां हजारों बच्चे इस बीमारी से पीड़ित होते थे, वहीं अब इनकी संख्या सौ में सिमट गई है। मौतों की संख्या में भी बेहद कमी आई है।
इंसेफेलाइटिस का कहर पूर्वी यूपी में 1978 से बरपा रहा था। पूर्वांचल में हर साल हजारों बच्चे इस बीमारी की चपेट में आते थे। वर्ष 2016 तक हर साल 1200 से 1500 बच्चे इंसेफेलाइटिस की चपेट में आने से दम तोड़ देते थे। प्रदेश में वर्ष 2016 तक की सरकारें इस पर नियंत्रण के लिए ठोस उपाय करने में सफल नहीं हो सकी। इस कारण यह बीमारी हर बार विपक्ष के लिए चुनावी मुद्दा बनती। इस मुद्दे को लेकर विपक्षी दल सरकार को घेरते। दम तोड़ते मासूम बच्चों के कारण सत्ता पक्ष इस मसले पर बैकफुट पर आ जाता।
बच्चों को जापानी इंसेफेलाइटिस से बचाव के लिए टीकाकरण का विशेष अभियान सरकार की ओर से प्रारंभ किया गया था। इसमें शत प्रतिशत बच्चों का टीकाकरण किया गया। इसके साथ ही बीआरडी मेडिकल कालेज की व्यवस्था को भी मजबूत किया। इसका असर यह हुआ कि मरीजों को प्राथमिक स्तर पर इलाज मिलना शुरू हुआ। इसके बाद धीरे-धीरे मरीजों की संख्या कम होती गई।
बुनियादी सुविधाएं की मजबूत
सरकार ने पांच साल में इंसेफेलाइटिस प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने पर जोर दिया। स्वास्थ्य विभाग, पंचायती राज विभाग, शिक्षा, ग्रामीण विकास विभाग, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, आशा वर्कर के साथ समन्वित कार्ययोजना तैयार की। ग्रामीण इलाकों में साफ-सफाई, जन जागरूकता, गंदगी से मुक्ति, शुद्ध पेयजल पर फोकस किया गया। स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) के तहत गांवों में घर-घर शौचालय बने। जिससे खुले में शौच से निजात मिली।
सत्ता पक्ष कर रहा बखान, विपक्ष मौन
इंसेफेलाइटिस को लेकर इस बार चुनाव में माहौल बदला हुआ है। चार दशक में पहली दफे सत्ता पक्ष के लिए यह बीमारी चुनावी मुद्दा बनी है। सत्ता पक्ष के नेता जोरशोर से इंसेफेलाइटिस नियंत्रण की गाथा सुना रहे हैं। इसके जरिए वह अब तक विपक्षी सरकारों की घेराबंदी भी कर रहे हैं। खुद सीएम योगी आदित्यनाथ इसे अपनी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक मान रहे हैं। वहीं विपक्ष इस बार इसको लेकर मौन है।
काबू में आ गई जानलेवा बीमारी
2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने इंसेफेलाइटिस को नियंत्रित करने का प्रयास शुरू किया। इस दौरान सूबे के 38 जिले इंसेफेलाइटिस से ग्रस्त थे। हर साल सैकड़ों मरीजों की मौतें होती थी। इसमे 95 फीसदी बच्चे शामिल होते थे। सरकार ने इस बीमारी के उपचार के लिए अंतर विभागीय समन्वय किया एवं स्वास्थ्य विभाग को नोडल विभाग बनाते हुए विशेष अभियान की शुरुआत की। जिसके तहत 16 पीडियाट्रिक इंटेन्सिव केयर यूनिट, 15 मिनी पीकू व 177 इंसेफेलाइटिस उपचार केन्द्र स्थापित किए गए।
रोकथाम के लिए ये किए गए प्रयास
● सभी ब्लाकों में इंसेफेलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर खोले गए।
● तीन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर मिनी पीडियाट्रिक आइसीयू की व्यवस्था की गई।
● सभी विभागों के प्रयास से साल में चार बार संचारी रोग व दस्तक अभियान चलाया गया।
● बच्चों का टीकाकरण किया गया।
● गांवों में पीने के लिए शुद्ध पानी की व्यवस्था की गई।
● घर-घर शौचालय का निर्माण कराया गया।
● नालियों की सफाई व एंटी लार्वा का छिड़काव कराया गया।
वर्ष मरीज मौतें
2010 2851 390
2011 2855 481
2012 2766 442
2013 2383 486
2014 2662 492
2015 1951 338
2016 2817 426
2017 2998 379
2018 1279 125
2019 936 52
2020 959 50
2021 976 42
2022(अब तक) 04 00