1962 के बाद पहली बार भारत-चीन सैनिकों को करना पड़ेगा इस चुनौती का सामना, 58 साल पुराना है विवाद

चीन के साथ भारी तनाव के बीच सेना ने आगामी सर्दी के मौसम में भी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर डटे रहने के लिए पूरी तैयारी कर ली है। भीषण सर्दी से बचाव के लिए गरम रखने वाले उपकरण, कपड़े और टेंट से लेकर राशन, ईंधन और गोला बारूद जैसे सभी आवश्यक सामान पर्याप्त मात्रा में एलएसी पर सेना की अग्रिम चौकियों तक पहुंचा दिए गए हैं।

ऐसे में अब यह साफ दिखने लगा है कि भारतीय सैनिकों को माइनस तापमान और मुश्किल हालात में लद्दाखी पठार की पहाड़ी चोटियों से अपने फौलादी हौसलों की ताकत चीन को दिखानी होगी. यानी 1962 के बाद पहली बार दोनों देशों के सैनिक इस तरह आमने-सामने की मोर्चाबन्दी में लद्दाख में तैनात होंगे. इस इलाके के निचले भागों में ही अक्टूबर-नवम्बर का न्यूनतम तापमान औसतन शून्य से 14 डिग्री तक नीचे जाता है. वहीं कठिन पहाड़ी चोटियों पर तो पारा अधिकतर शून्य से नीचे ही रहता है.

1962 में चीन ने अक्टूबर के महीने में ही भारत पर हमला बोला था. चीनी सेनाओं ने 20 अक्टूबर को आक्रमण किया था और करीब एक महीने तक चली इस लड़ाई के बाद 21 नवंबर 1962 को एकतरफा तरीके से संघर्षविराम का ऐलान किया था. इसी लड़ाई से भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा या एलएसी की पैदाइश हुई जो आजतक विवाद की जड़ है.

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