‘द केरल स्टोरी’ में कैसे शूट हुए सुसाइड, गला काटने जैसे सीन्स?

स्टार एक्सप्रेस/संवाददाता

मुंबई : ट्रेलर रिलीज के कुछ दिनों बाद ही आने वाली फिल्म द केरला स्टोरी को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। कांग्रेस पार्टी ने फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है और आग्रह किया है कि 5 मई, 2023 को रिलीज होने वाली इस फिल्म को ना दिखाया जाए। द केरल स्टोरी के रिलीज के बाद फिल्म के कुछ ब्रूटल सीन्स की भी चर्चा हो रही है। आखिर कैसी रही इस फिल्म की शूटिंग खुद बता द केरल स्टोरी रिलीज हो चुकी है।

फिल्म अपने सब्जेक्ट को लेकर विवादों में है। फिल्म पर चर्चा का आलम ये है कि रिलीज के पहले दिन ही खुद प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने अपनी चुनावी सभा में इसका जिक्र कर इसे केरल में आतंकी साजिश की तस्वीर बताया। फिल्म के सिनेमैटोग्राफर प्रशांतनु महापात्रा FTTI जैसे संस्थान से निकले हैं। वे यहां बतौर गेस्ट लेक्चरर भी स्टूडेंट्स को शूटिंग की बारीकियां सिखाते हैं।

फिल्म के कॉन्सेप्ट पर प्रशांतनु बताते हैं कि डायरेक्टर सुदीप्तो सेन के साथ लव जिहाद पर उन्होंने डॉक्यूमेंट्री बनाई थी। उस दौरान केरल जाकर पीड़िता के  परिवार वालों से बात हुई तो वहीं से फिल्म का कॉन्सेप्ट निकला। उस डॉक्यूमेंट्री की भी कुछ क्लिप्स इस फिल्म में इस्तेमाल हुई हैं।

प्रशांतनु कहते हैं कि सिनेमैटोग्राफर के रूप में हमें हमेशा किरदारों से डिटैच होकर अपना काम करना पड़ता है। भले हमारे अंदर इमोशन अपार हों लेकिन हमें दिल को इतना मजबूत करना पड़ता है कि हम इमोशन में न बहकर वहां केवल डे लाइटिंग, कैमरा एंगल, शॉट्स की क्लैरिटी जैसी टेक्निकल चीजों पर ज्यादा फोकस करें। यह वाकई में बहुत मुश्किल काम है। एक लड़ाई सी चलती है अंदर, आपको उसमें शामिल होते हुए भी खुद को अलग रखना होता है।

ऐसे शूट किए गए रेप, मर्डर के सीन

फिल्म की शूटिंग के अपने अनुभव पर प्रशांतनु बताते हैं कि फिल्म में कलर का बहुत ध्यान रखा गया है। जैसे अदा जब इंटेरोगेशन रूम में होती हैं, तो वहां हमने ब्लू जैसे कलर का इस्तेमाल किया है, ताकि वो इंटेंस लग सकें। हमने जानबूझकर उसे ज्यादा डार्क नहीं किया है क्योंकि शालिनी का किरदार एक ही स्पेस, एक ही जगह और कुर्सी पर बैठ सारे इमोशन दिखाता है। हमने उसे ऐसा शूट किया है, जिससे सीन दिमाग में सोचा जाए। वो बयान दे रही है, लेकिन सोच रहे हैं दर्शक। उसका फैमिली के बारे में बताना, प्यार में पड़ना, सीरिया में हुए रेप जैसे किस्सों का जब वो जिक्र कर रही होती है, वो सारे सीन दर्शकों के दिमाग में चलने लगते हैं।

15 दिन की शूटिंग

सीरिया, अफगानिस्तान का बॉर्डर दिखाने के लिए हमने फिल्म को लद्दाख की घाटियों में शूट किया। वहां 15 दिनों रोजाना 10 से 12 घंटे शूटिंग होती थी। हमने बर्फ पड़ने के कुछ घंटे पहले तक शूट किया था। एक वक्त माइनस 7 तक पारा गिर गया था। कुछ सीन्स ऐसे रहे हैं, जो मेरे लिए काफी मुश्किल थे। एक सीन में जहां कैंप से शालिनी भाग रही होती है, वहां मैं भी हाथ में कैमरा लेकर भाग रहा था। एक और सीन है, जहां लड़की सुसाइड करती है, उसके लटकते पैर को हमें जिस एंगल से पेश करना था, वो मुश्किल भरा था।

मैंने वो चिट्ठियां पढ़ी हैं, मां का दर्द देखा है

फिल्म के प्रोपेगैंडा कहे जाने पर प्रशांतनु कहते हैं, कुछ तो लोग कहेंगे। अगर प्रोपेगैंडा है, तो आप इसके ऑपोजिट फिल्म लेकर आएं। फिल्म को किसी एजेंडे से हटकर एक सिनेमैटिक नजरिये से देखें, तो शायद आपका नजरिया बदले। वैसे प्रोपेगैंडा की बात पर मैं यही  कहना चाहूंगा कि यह माध्यम तो सबके लिए है, आपको ऐसा लगता है, तो उसके ऑपोजिट कोई फिल्म लेकर आए। आर्ट को हमेशा इस तरह की चीजों के गुजरना पड़ता है।

अगर हर किसी को एक्सप्लेन ही करने लग जाए और कहानी को जस्टिफाई किया जाए, तो फिर 6 घंटे की फिल्म बनानी पड़ेगी। मैंने डॉक्यूमेंट्री के दौरान उन माओं से बात की हैं, उनकी आंखों में दर्द देखा है। जिस लड़की ने सुसाइड किया है, उसके प्रेमी की चिट्ठियां पढ़ी हैं कि कैसे उसे ड्रग्स में रखा जाता था। बहस तो चलता रहेगी लेकिन सच्चाई अपनी जगह कायम रहेगी।

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