सड़क किनारे चने का ठेला लगाकर, एक अनपढ़ बाप ने अपने बेटे को बनाया आइआइटीयन
सोच बदलती है तो पीढ़ियां बदलती हैं, व पीढ़ियां बदलती हैं तो देश भी बदलता है. सड़क किनारे ठेला लगाकर चना-भूंजा बेचने वाले राजू प्रसाद गुप्ता इसी सोच का पर्याय व उनके पुत्र सत्यप्रकाश इस परिवर्तन का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं. सड़क किनारे ठेला लगाकर चना-भूंजा बेचने वाले राजू प्रसाद गुप्ता व उनके बेटे सत्यप्रकाश के जज्बे, प्रयत्न व सफलता की यह प्रेरक गाथा सुखद परिवर्तन का सशक्त संदेश है.
बिहार के औरंगाबाद जिले के देव प्रखंड के बुढ़वा महादेव निवासी राजू प्रसाद खुद पढ़-लिख नहीं सके. मुफलिसी थी, परिवार के भरण-पोषण के लिए ठेला पर चना-भूंजा बेचने लगे.लेकिन बच्चों की एजुकेशन के लिए लालायित. दो पुत्र व एक पुत्री, किसी की भी एजुकेशन में कोई कमी नहीं. जो कमाते उसी से पेट काटकर बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करते रहे. ऐसे दशाभी आए, जब फीस के पैसे नहीं होते. पिता दोगुनी मेहनत करता. एक जुनून था कि खुद नहीं पढ़ सके तो क्याहुआ, बच्चों को इतना काबिल बना दें कि संसार देखे.
बेटे ने भी पिता की मेहनत व प्रण का मान रखा. सबसे बड़े बेटे सत्यप्रकाश ने 2015 में सीबीएसई से बारहवीं की इम्तिहान उत्तीर्ण की. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, आइआइटी) में नामांकन के लिए संयुक्त प्रवेश इम्तिहान (ज्वाइंट एंट्रेंस एक्जामिनेशन, जेईई) का भी फार्म दाखिल कर दिया था. प्रतिभा व मेहनत ही उनके संबल थे. पिता की मजबूरियों से वाकिफ. पहले कोशिश में ही सफलता मिल गई. अब दो छोटे भाई-बहन भी इसी राह पर हैं, जो वैसे स्कूल में पढ़ रहे हैं.
सत्यप्रकाश ने आइआइटी, गुवाहाटी में कंप्यूटर साइंस में दाखिला लिया. बीटेक के अंतिम साल के विद्यार्थी हैं, जिनका एक बड़ी कंपनी में इसी वर्ष अच्छे पैकेज पर कैंपस सेलेक्शन हो गया है. उन्होंने बोला कि घर की हालत छिपी नहीं थी. इसे समझता था, इसलिए कभी मेहनत में कोई कमी नहीं छोड़ी. माता-पिता का संघर्ष, शिक्षकों की मेहनत व साथियों के प्रोत्साहन ने हमेशा प्रेरणा दी.
पिता राजू प्रसाद कहते हैं, बेटे की सफलता की समाचार सुनते ही ज़िंदगी के सारे कष्ट भूल गया. चने बेचकर बेटे को पढ़ाया. मेरे पास मकान छोड़ कुछ नहीं है. लेकिन आज मेरे पास संसार की सबसे बड़ी पूंजी है. मैं भले नहीं पढ़ सका, पर बेटे ने उसकी भरपाई कर दी.