राजस्थान, छत्तीसगढ़ कांग्रेस पार्टी के हाथों गंवाने पड़े, वहीं मिजोरम व तेलंगाना में किंगमेकर बनने के सपने पर भी ग्रहण लग गया. दरअसल बीते वर्ष गुजरात विधानसभा चुनाव में किसान वर्ग में बढ़ती नाराजगी को पार्टी भांप नहीं पाई व उसे इसकी मूल्य तीन अहम राज्यों को गंवा कर चुकानी पड़ी. इसके साथ ही पार्टी स्वशासित राज्यों में दमदार प्रदर्शन न कर सकने की भ्रांति भी दूर नहीं कर पाई.
नतीजे पर नेतृत्व ने फिल्हाल चुप्पी साध रही है, मगर राज्यों केनेता व्यक्तिगत वार्ता में यह स्वीकार करने में नहीं हिचक रहे कि पार्टी को किसानों की नाराजगी ले डूबी. इन तीनों ही राज्यों में किसानों की ऋण माफी, फसलों की उचित मूल्य दिलाने का कांग्रेस पार्टी का सियासी दांव पार्टी पर भारी पड़ गया.जबकि बीते वर्ष गुजरात में हुए विधानसभा चुनाव में ग्रामीण क्षेत्रों में विद्रोह का बिगुल बजा कर किसान वर्ग ने अपनी नाराजगी से बीजेपी नेतृत्व को आगाह कर दिया था. इसके बावजूद खेती-किसानी के मुद्दे पर पार्टी नेतृत्व अतिआत्मविश्वास का शिकार हो गई.
मोदी-शाह की अजेय छवि को लगा बट्टा
भाजपा के लिए चिंता की बात यह है कि चुनाव के नतीजे ने पीएम नरेंद्र मोदी व बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की अजेय होने की छवि पर बट्टा लगा दिया. बिहार व दिल्ली विधानसभा चुनाव को अपवाद माने तो बीते आमचुनाव से ले कर राज्यों में जीत दर जीत ने इस सियासी जोड़ी ने कांग्रेसमुक्त हिंदुस्तान के नारे को न सिर्फ मजबूती दी थी,ख् बल्कि इस जोड़ी के अजेय होने की छवि गढ़ दी थी. मगर इन नतीजों ने इस छवि में दरार डाल दी.
राहुल का सियासी कद बढ़ने की चिंता
आम चुनाव के साथ ही बीजेपी ने बेहद सफलतापूर्वक कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के गंभीर राजनीतिज्ञ न होने व कम ज्ञान होने की छवि गढ़ी थी. हिंदी हार्टलैंड में सफाए के बाद राहुल का सियासी कद आकस्मित बढ़ना पार्टी के लिए नयी चुनौती है. नतीजे ने बीजेपी के खिलाफ विपक्ष की गोलबंदी के मजबूत होने का भी संदेश दिया है.
नतीजे आने से अच्छा पहले सहयोगी रालोसपा ने राजग से नाता तोड़ा तो नतीजे आने के बाद सहयोगी शिवसेना ने बीजेपी को हराने के लिए मतदाताओं का धन्यवाद कर भविष्य में हमला तेज करने के इशारा दे दिए. निकट भविष्य में अपना दल, लोजपा व जदयू जैसे सहयोगी दलों का भी पार्टी पर दबाव बढ़ेगा. केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने कल ओबीसी मुद्दे पर पीएम के समक्ष नाराजगी जता कर इस आशय का साफ संदेश दे दिया था.
स्वशासित राज्य चिंता के विषय
आमचुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी स्वशासित राज्यों में मुश्किलों से घिरी, जबकि जहां कांग्रेस पार्टी थी वहां आराम से सत्ता हासिल किया. आमचुनाव के बाद स्वशासित गोवा में पार्टी के सीटों की संख्या 23 से घट कर 12 रह गई, वहीं गुजरात में पार्टी तिहाई अंकों में नहीं पहुंच पाई.
इसके बाद अब मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ व राजस्थान जैसे स्वशासित राज्यों में पार्टी का चुनाव से सामना हुआ व पार्टी ने तीनों राज्य गंवा दिए. पार्टी नेतृत्व के लिए इशारा साफ हैं, प्रतीकात्मक व धारणा बनाने की पॉलिटिक्स के इतर मतदाताओं की निगाहें अब बीजेपी की सरकारों के कामकाज पर भी है.