जब संतो ने की योगी के सामने मुलायम सिंह की तारीफ

स्टार एक्सप्रेस डिजिटल  : गोरखनाथ मंदिर में ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की 52वीं और ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की 7वीं पुण्‍यतिथि पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। कार्यक्रम में पहुंचे शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्‍वती ने मुख्यमंत्री सीएम योगी आदित्यनाथ के सामने ही पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) और मायावती (Mayawati) की तारीफ के कसीदे पढ़ दिए। इस दौरान सभागार में सन्‍नाटा पसर गया। इसके बाद सीएम योगी आए और अप्रत्‍यक्ष रूप से शंकराचार्य की बात का जवाब दिया। योगी ने जवाब देते हुए कहा कि संस्‍कृत के योग्‍य शिक्षकों को तैयार करना धार्मिक संस्‍थाओं को आगे आने का आह्वान किया। उन्‍होंने कहा कि इसमें सरकार पूरा सहयोग करेगी।

वासुदेवानंद सरस्‍वती ने कहा कि आज हमारे उत्‍तर प्रदेश में संस्‍कृत की क्‍या दशा है। मैं न कहूं तो अच्‍छा है। हमारे यहां संस्‍कृत विद्यालय नहीं है। शंकराचार्य ने पूर्व मुख्‍यमंत्री मुलायम सिंह यादव को धन्‍यवाद देते हुए कहा कि उन्‍होंने संस्‍कृत के विद्वानों को माध्‍यमिक स्‍तर तक लाकर उनको व्यवस्थित करने के साथ उन्‍हें वेतन दिया। उन्‍होंने ये भी कहा कि जो वेतन का स्‍केल चल रहा है, वो उन्‍हीं का शुरू किया हुआ है।

शंकराचार्य यहीं शांत नहीं रहे। उन्होंने पूर्व सीएम मायावती की तारीफ भी की। उन्होंने कहा कि अपने यहां नई नियुक्तियां करने के पहले मायावती ने विश्‍वविद्यालय से पूछा था कि नियुक्तियां क्‍यों रुकी हुई हैं। विश्‍वविद्यालय के पास कोई प्रमाण नहीं था। अंत में उन्‍होंने कहा कि प्राचीन पद्धति से नियुक्तियां की जाएं। उसका लाभ लेते हुए उन्‍होंने विश्‍वविद्यालय से राय लेते हुए नियुक्तियां कर दी, लेकिन, योग्‍य व्‍यक्ति नहीं मिला। अयोग्‍य को उन्‍होंने नियुक्त किया है। उन्‍होंने सीएम से अपील करते हुए कहा कि प्राचीन पद्धति पर वेतन पर संस्‍कृत विद्यालयों में अध्‍यापाकों को रखा जाए। इसके साथ ही सरकारी नियंत्रण में रखा जाए। इन्‍हें योग्‍यता पर नियुक्‍त किया जाए, जिससे रुपया वाला कोई गलत काम न हो सके। तभी संस्‍कृत और संस्‍कृति की रक्षा हो सकेगी।

सीएम योगी का जवाब कहा कि भारत और भारतीय संस्‍कृति इन दोनों को बचाने के लिए हर भारतीय को तैयार होना होगा। आज जब देश एक नया भारत बनने को अग्रसर है। हर एक क्षेत्र में भारत दुनिया के सामने नए प्रतिमान स्‍थापित कर रहा है। तो हर नागरिक को अपना आत्‍मावलोकन करना होगा कि इस देश और इसकी महान संस्‍कृति के लिए वो अपने दायित्‍वों का निर्वहन सही ढंग से कर पा रहा है। सदियों से दबी-कुचली भावनाओं का क्‍या सम्‍मान नहीं मिलना चाहिए। अवश्‍य मिलना चाहिए। उन्‍हें प्रोत्‍साहित किया जाना चाहिए। हर स्‍तर पर उन्‍हें आगे बढ़ाने की आवश्‍यकता है।

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