अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में शामिल होंगी प्रदेश की 39 जातियां

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सरकार ने प्रदेश की 39 जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की लिस्ट में शामिल कराने की कवायद शुरू कर दी है। ऐसा करके बीजेपी पिछड़ों के वोटों को लुभाने की बड़ी मजबूत कोशिश की है। यूपी सरकार काफी लंबे समय से पिछड़ा वर्ग आयोग के साथ बैठकें कर मंथन कर रही थी कि आख़िरकार किन जातियों को शामिल किया जा सकता है। इन बैठकों के बाद आयोग और सरकार इस नतीजे पर पहुची है कि प्रदेश की 39 जातियां ऐसी हैं, जिन्हें इस सूची में शामिल किया जा सकता है।

 

 

 

 

उत्तर प्रदेश के राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने सरकार को कई मानकों पर सर्वे करने के बाद अपनी सिफारिश सरकार को भेजी है। इसके बाद सरकार इसके लिए अपनी स्वीकृति दे देगी। लेकिन हकीकत ये भी है कि सरकार को इन जातियों को शामिल करने के बाद इसका सीधा फायदा विधानसभा चुनाव में मिलने की उम्मीद है। आयोग ने जनसंख्या में सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और राजनीतिक सहित करीब 3 दर्जन लोगों पर सर्वे कराया और उसके आधार पर अपनी रिपोर्ट पूरी की है। उत्तर प्रदेश में ओबीसी की सूची में इस वक्त 79 जातियों को शामिल करने पर प्रतिवेदन दिया गया है, जिनमें से 39 जातियों को मानकों के आधार पर आखिरी रूप दिया गया है।

 

 

 

 

इन जातियों में अग्रहरि, रोहिल्ला, भाटिया, मुस्लिम, हिंदू कायस्थ, दोहर, दोसर वैश्य, मुस्लिम कायस्थ, केसरवानी, वैश्य और भाट जैसी जातियां शामिल है। अभी तक राज्य पिछड़ा आयोग में जो सर्वे किया है, उस पर 24 जातियों के बारे में सर्वे पूरा किया जा चुका है, बाकियों का अभी होना बाकी है। इसी के आधार पर आयोग अपनी सिफारिश सरकार को भेजेगा। अगर सरकार इन जातियों को ओबीसी का दर्जा देने का कदम उठाती है तो यूपी का राजनीति के लिये बीजेपी का यह बहुत बड़ा कदम होगा जो आने वाले चुनाव में उनके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। इनमें से कई जातियां ऐसी हैं जो पहले से बीजेपी का पारंपरिक वोट बैंक हैं, लेकिन इन्हें ओबीसी का दर्जा मिलने के बाद इन जातियों को तमाम सरकारी नौकरियों और व्यवस्थाओं का फायदा मिल सकेगा।

 

 

 

 

ओबीसी सूची में जातियों की संख्या बढ़ाने के फैसले वाला बिल राज्यसभा मे पास हो चुका है, इसीलिए अब राज्यों को भी अधिकार मिल चुका है कि वह अपने मानकों के हिसाब से अलग-अलग कैटेगरी में ओबीसी की जातियों को शामिल कर सकें। चुनाव से ठीक पहले जातीय समीकरणों को दुरुस्त करने के लिए बीजेपी के पास ये बहुत बड़ा हथियार है। इसीलिए पहले से ही बीजेपी लगातार ओबीसी मतदाताओं को लुभाने के लिए अलग-अलग योजनाएं भी चला रही है। अगर आंकड़ों पर गौर करें पिछले 2014, 2017 और 2019 के चुनाव में विधानसभा से लेकर लोकसभा तक में बीजेपी को जिताने के लिये ओबीसी वोटों का ही सबसे बड़ा योगदान रहा है। ऐसे में केंद्र की ओबीसी को 27 फ़ीसदी आरक्षण देने की घोषणा के बाद उत्तर प्रदेश मे बीजेपी के हाथों एक ऐसा बड़ा मुद्दा आ गया है, जिसके सहारे विधानसभा चुनाव की वैतरणी में लंबी छलांग लगाई जा सकती हैं।

 

 

 

 

यूपी में ओबीसी दूसरी विपक्षी पार्टियों का भी पारंपरिक वोट रहा है, जिसमें ज्यादातर हिस्सा समाजवादी पार्टी और बसपा के पास रहा है, लेकिन बीजेपी को केंद्र सरकार के इस कदम से यूपी मेंबड़ी बढ़त मिल सकती है। अब देखना यह है कि अपने ओबीसी वोटों को बचाने के लिए समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस कौन सा दांव चलती है, अगर ओबीसी के ज्यादातर वोट बीजेपी के पाले में आते हैं तो किसी भी सियासी पार्टी के लिए बीजेपी को इस चुनाव में हराना बेहद मुश्किल होगा।

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