ऐतिहासिक है ग्राम पंचायत जनई का कार्तिक पूर्णिमा मेला

स्टार एक्सप्रेस / संवाददाता

महराजगंज, रायबरेली। आज समाज इतना संज्ञा सून्य हो जायेगा इसका अनुमान किसे था। बताते हैं कि जनई गाँव में स्थित जलासय के मध्य एक स्थान ऐसा भी है जो द्व्वापर युग और कलयुग के संधिकाल को रेखांकित करता है कहा जाता है कि जब महाराज जनमेजय ने भारत देश में अपने राज्य में नाग विध्वंसक यज्ञ हर तीस कोस पर की थी उस समय अंतिम यज्ञ जनई में हुई जिसका कालांतर में जन्मेजयीं नाम था। बताते हैं कि इसी स्थान पर महाऋषिं आस्तीक ने महाराज जन्मेजय,तक्षक तथा इन्द्र भगवान में त्रिपक्षीय समझौता कराया था।

आस्तीक ऋषि का आश्रम मंदिर के उत्तर में टीले के रुप में मौजूद हैं जिसे मुगलों के समय हुए आक्रमण में मिर्जांबेग नामक मुगल आक्रांता ने जीत कर मिर्जा गढ़ बसाया था बताते हैं कि कालांतर में अयोध्या से आये साधुओं ने मिर्ज़ा गढ़ को ध्वस्त कर दिया था आज भी गाँव वालों को यदा कदा प्रमाण मिलते रहते हैं जनई और आस पास के गाँवों में इतिहास बिखरा पड़ा है जरुरत है उसे सहेजने और संजोने परिसर में मौजूद सीतारामन मंदिर इसी पुरातनता को समेटे हमें अपनी गौरवगाथा सुनाता रहता है आये दिन यहाँ कोई ना कोई धार्मिक अनुष्ठान होता रहता।

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मंदिर में मेले की पुरातनता मंदिर के पुरातन होने से समझी जा सकती है आस पास के साथ ही दूर दराज के व्यापारी भी मेले में सिरकत् करते रहे किन्तु आज के आधुनिक समाज में पुरानी मान्यताएं दम तोड रही है वह तो भला हो वर्तमान सरकार का जिसमें मंदिर का सौंदर्यीकरण हुआ और आज मंदिर एक पर्यटक स्थल के रूप में जनई को पहचान दिला रहा है।

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