राफेल सौदा: यूपीए शासनकाल में तय हुए 126 विमानों के सौदे
रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने 29 जून 2007 में 126 मीडियम मल्टीरोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) के अधिग्रहण की आवश्यकता को मंजूरी दी थी. जिसमें 18 विमान (सिंगल स्कवाड्रन) को असल निर्माता से अधिग्रहित किया जाएगा जबकि 108 का निर्माण लाइसेंस के तहत एचएएल सौदे पर हस्ताक्षर होने की तारीख से 11 वर्षों में करेगा. 6 विक्रेताओं ने अप्रैल 2008 में प्रस्ताव प्रस्तुत किए थे व इसमें तकनीकी व एरिया मूल्यांकन शामिल था.
नवंबर 2011 में सार्वजनिक बोली प्रारम्भ हुई व जनवरी 2012 में दसॉल्ट एविएशन को सबसे कम बोली लगाने वाला चुना गया. उच्चतम कोर्ट ने कहा, ‘इसके बाद वार्ता प्रारम्भ हुई जिसके बाद यह बिना अंतिम परिणाम के लगातार जारी रही. इसी समय केंद्र में 2014 में गवर्नमेंट बदल गई.‘ केंद्र गवर्नमेंट ने कोर्ट को बताया एचएएचल को 2.7 फ्रांस की बजाए राफेल लड़ाकू विमान बनाने में अत्यधिक समय लगता. इसके बाद एचएएल द्वारा दसॉल्ट के कांट्रैक्ट पर 108 विमानों के निर्माण का मुद्दा तीन वर्षों तक अनसुलझा ही रहा.
उच्चतम कोर्ट ने कहा, ‘इस देरी की वजह से राफेल के अधिग्रहण की लागत प्रभावित हुई क्योंकि सौदा इन-बिल्ट एस्केलेशन (देरी होने पर मूल्य में वृद्धि) का था. इस बीच यूरो-रुपये एक्सचेंज ने भी सौदे पर प्रभाव डाला. जिसकी वजह से मार्च 2015 में खरीद के लिए अनुरोध (आरपीएफ) को वापस लेने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी गई थी.‘
10 अप्रैल, 2015 को भारत-फ्रांस ने एक संयुक्त बयान जारी किया जिसके अनुसार उड़ने की हालत में 36 विमानों को अंतर सरकारी समझौते के तहत अधिग्रहित किया जाएगा. इस समझौते को डीएसी ने मंजूरी दे दी. इसी बीच 126 विमानों के आरपीएफ को जून 2015 में पूरी तरह से वापस ले लिया गया था. सौदे को लेकर वार्ता हुई व अंतर-मंत्रालयी परामर्श के बाद प्रक्रिया पूरी हो गई. इसे कैबिनेट की सुरक्षा समिति ने हरी झंडी दे दी. 23 सितंबर, 2016 को जो समझौता हुआ उसके अनुसार केवल विमान के साथ हथियार, तकनीकी समझौते वऑफसेट कांट्रैक्टर पर भी हस्ताक्षर किए गए हैं. यह विमान अक्तूबर 2019 में हिंदुस्तान को मिलने प्रारम्भ हो जाएंगे.