कृषि में क्रांति के साथ पर्यावरण संरक्षण की तरफ इफको ने बढ़ाये कदम, शुरु किया नैनो डीएपी का ट्रायल

स्टार एक्सप्रेस डिजिटल.

लखनऊ/अम्बेडकरनगर.

इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर र्कोपरेटिव लिमिटेड या आई.एफ.एफ.सी.ओ.(IFFCO) ने भारतीय कृषि तकनीक में जहां एक तरफ नैनो तरल यूरिया की खोज के साथ एक नए अध्याय की शुरुआत की थी वहीं अब एक कदम आगे बढ़ाते हुए इसके परीक्षण कार्य की भी शुरुआत कर दी है।

गुरुवार को उत्तर प्रदेश के जनपद अम्बेडकरनगर के विकास खंड बसखारी में नैनो डीएपी का ट्रायल शुरू किया गया। इससे कृषि का रूपांतरण होने के साथ-साथ कृषि उत्पादन बढ़ेगा, पानी की खपत कम होगी, प्रदूषण घटेगा एवं केंद्र द्वारा यूरिया पर दी जाने वाली सब्सिडी में बचत होगी।

इफको क्षेत्र प्रबंधक विवेक त्रिवेदी, इफको विक्रय अधिकारी संजय सिंह यादव और अभिषेक नायक द्वारा परीक्षण के लिए चिन्हित खेतों में इफको के नैनो डीएपी का उपयोग गेहूं की फसल में शुरु करने के साथ दवा छिड़काव की विधि भी किसानों को बताया।

इफको विक्रय अधिकारी संजय सिंह यादव ने बताया कि सामान्य डीएपी के एक बोरे की जगह नैनो डीएपी की आधा खपत ही फसलों के लिए पर्याप्त है। इस खाद से जड़ उपचार व पर्णिव छिड़काव से शत प्रतिशत पौधों द्वारा ग्रहण व उपयोग कर लिया जाता है।

इससे मिट्टी में फास्फेट का स्थिरीकरण कम व सरकार के अनुदान राशि मे बचत व कम खर्च पर अधिक लाभ मिलेगा। जबकि सामान्यतः डीएपी उर्वरक का फसल में अवशोषण व उपयोग मात्र 30% ही हो पाता है तथा शेष 70% अघुलनशील तत्व के रूप में अनुपयोगी हो जाता है जिससे सम्पूर्ण खाद का उपयोग नहीं हो पाता है व मिट्टी में कड़ी सतह बन जाती है।

इफको द्वारा नैनो डीएपी के प्रदर्शन व इसके उपयोग के बारे में बताते हुए विवेक त्रिवेदी ने कहा कि एक एकड़ फसल में 500 एमएल का उपयोग होता है। बीज अथवा जड़ उपचार में 50 लीटर पानी के साथ 250 एमएल नैनो उर्वरक का उपयोग होता है। 250 एमएल उर्वरक का प्रथम छिड़काव रोपाई के 20 से 25 दिन बाद 2 एमएल के साथ एक लीटर पानी की मात्रा की दर से छिड़काव करना चाहिए।

एक एकड़ खेत में सामान्यतः एक बोरी डीएपी का उपयोग किसान द्वारा किया जाता है जबकि नैनो प्रक्षेत्र खेत के एक एकड़ में 25 किलो डीएपी के साथ नैनो का उपयोग होता है।

बचत का आकलन ग्राम बसहिया में किसान संतोष पटेल के खेत में तथा हरैया में प्रवीण वर्मा एवं अंकित मौर्य के एक एकड़ खेत में प्रदर्शन कर किया गया। प्रदर्शन के दौरान कृषि विभाग के डॉ0 बृजेन्द्र कुमार भी उपस्थित रहे।

नैनो तकनीक क्या है ?

यह तकनीक अणु और परमाणु के स्तर पर काम करती है। यह छोटे कणों को इस प्रकार से डिजाइन करती है कि वे उच्च सतह द्रव्यमान अनुपात पर काम करते हैं, और पौधों में पोषण की संतुलित मात्रा पहुँचा देते हैं।

नैनो यूरिया के लाभ –

  • यूरिया के अत्याधिक उपयोग पर रोक
  • मृदा स्वास्थ में सुधार
  • जल का सीमित प्रयोग होगा
  • कृषकों की लागत कम होगी
  • यूरिया से होने वाला पारिस्थितिकी प्रदूषण कम होगा। नैनो यूरिया से अपेक्षाकृत कम प्रदूषण होता है।
  • इफ्को के अनुसार पैदावार में 8% की वृद्धि हो सकती है।
  • भंडारण पर कम खर्च करना होगा।

फिलहाल देश में प्रतिवर्ष 3 करोड़ टन यूरिया की खपत होती है। प्रति एकड़ लगभग दो बैग यूरिया की खपत होती है, जिसे नैनो यूरिया की 500 मि.ली. की एक बोतल से स्थानांतरित किया जा सकता है। खाद सब्सिडी में 28% कमी आने का अनुमान है।

ईफको की इस उपलब्धि का भविष्य निर्यात क्षेत्र में खंगाला जाना चाहिए। इस प्रकार वैश्विक हरित क्रांति में भारत की ओर से यह बड़ा योगदान हो सकता है।

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