आजम खां ने अपनी ही सरकार को लेकर डीजीपी को लिखा खत

लखनऊ ()। संसदीय कार्यमंत्री आजम खां ने डीजीपी जगमोहन यादव को चिट्ठी लिखी है। उन्होंने लिखा है कि कानून खामोश होकर सबकुछ देखता रहता है। मुसलमानों को गाली दी जाती है, उन्हें अपमानित किया जाता है, कभी कहा जाता है कि पाकिस्तान चले जाओ, कभी मुसलमानों के बच्चे कैसे पैदा होते हैं इसको लेकर कमेंट किया जाता है। इस तरह की बातें सुनने के मिलती हैं इसके बाद भी कानून खामोश, तमाशबीन बनकर सब देखता रहता है। इससे अपराधियों और सांप्रदायिक ताकतों को बढ़ावा मिल रहा है। इस तरह की नफरत फैलाने वालों पर कार्रवाई न होना उन्हें बढ़ावा देना है।

अपने दो पेज के शिकायत खत में आजम ने बहुत कुछ लिखा है। वह आगे लिखते हैं कि पंचायत चुनाव के दौरान सख्ती बरतनी होगी। सांप्रदायिक तत्व कभी भी बवाल करने की कोशिश कर सकते हैं। उन्होंने बकरीद पर कुर्बानी को लेकर लिखा है कि समाचार पत्रों में पढ़ने को मिलता है कि जहां पर कुर्बानी होती थी वहां पर रोक लगा दी गई है। जबकि मांस खाने वालों की संख्या मुसलमानों से कहीं अधिक गैर मुस्लिमों की है। यदि सरकार ने जबरन कोई समझौता करवाया हो और मौजूदा सरकार ने इसे बलपूर्बक लागू करवाना चाहती है तो यह न्याय नहीं है। इसके अलावा यदि अन्य जानवरों की कुर्बानी करने वालों को डराया धमकाया जाता है और कुर्बानी करने वालों को रोक दिया जाता है तो फिर शासन और प्रशासन की जिम्मेदारी है कि ऐसे कमजोर लोगों को संरक्षण प्रदान करें।

आजम खां ने यह भी लिखा है कि यदि बकरीद के मौके पर पशु की कुर्बानी किया जाना अनुचित है तो फिर किसी भी प्रकार के पशुओं के काटने पर प्रतिबंध होना चाहिए। चाहे वह घर, मोहल्ला हो या बूचड़खाना। बड़े-बड़े गोस्त के ऐसे कारखाने हैं, जहां से विदेशों को मांस निर्यात किया जाता है। उन्हें भी बंद होना चाहिए। यह कहां का इंसाफ है कि गरीब की कुर्बानी और उसकी धार्मिक आस्था का कानून के दायरे में रहते हुए पालन करना जुर्म है और अलकबीर जैसी व्यावसायिक संस्था के मालिकान जो पूरी दुनिया में गोश्त का निर्यात करते हैं और जैन परिवार से हैं वह इस परिधि में नहीं आते हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की है कि पुलिस महानिदेशक ऐसी व्यवस्था करेंगे कि त्योहार शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न हों और लोग भयभीत न हों।

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