युद्ध स्तर पर चल रही सजल श्रद्धा प्रखर प्रज्ञा के स्थापना की तैयारी
○ डा चिन्मय पाण्डया के द्वारा कल होगा अनावरण
स्टार एक्सप्रेस संवाददता
रायबरेली: गायत्री शक्तिपीठ रायबरेली में युग्म के समाधि स्थल जल श्रद्धा प्रखर प्रज्ञा की स्थापना की तैयारी युद्ध स्तर पर चल रही है। इन प्रतीकों की प्राण प्रतिष्ठा गायत्री शक्तिपीठ पर शान्तिकुन्ज हरिद्वार से आए प्रबुद्ध आचार्यों द्वारा वैदिक रिति से आज की जाएगी, जिसके पश्चात आगामी 12 मार्च को डा चिन्मय पाण्डया प्रो वाइस चांसलर देव संस्कृति विश्व विद्यालय शान्तिकुन्ज हरिद्वार के द्वारा सजल श्रृद्धा प्रखर प्रज्ञा का अनावरण किया जाएगा।
गायत्री परिवार के सभी साधको के लिए यह ऐतिहासिक क्षण है। सजल श्रद्धा एवं प्रखर प्रज्ञा ऋषि युग्म पं श्रीराम शर्मा आचार्य एवं माता भगवती देवी शर्मा की सूक्ष्म चेतन शक्ति का प्रतीक होने के साथ ही गायत्री परिवार के करोड़ों साधकों की आस्था का प्रमुख केन्द्र है। गायत्री शक्तिपीठ रायबरेली इन पावन प्रतीकों की स्थापना के बाद जिले में आध्यात्मिक ऊँर्जा का प्रमुख केन्द्र बन जाएगा और शान्तिकुन्ज हरिद्वार की भाँति यहाँ से भी सभी धर्मनिष्ठ साधको को आध्यात्मिक प्रकाश के साथ ऋषि युग्म का सूक्ष्म संरक्षण प्राप्त होता रहेगा।
इन प्रतीकों के विषय में मिषन के करोड़ों साधको की दिव्य अनुभूतियां एवं प्रेरणाएं है जिसने विषम परिस्थतियों में उनका मार्गदर्शन करने के साथ ही उनकी मनोकामनाओं की पूर्ति भी की युगऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य ने समाधिस्थ होने से पूर्व अपने करोड़ों शिष्यों को यह आश्वासन दिया था कि जब भी तुम्हें कोई असाध्य कष्ट हो, कोई समाधान न दिख रहा हो और कोई साथ देने वाला न दिखाई दे रहा हो, ऐसी विषम स्थिति में तुम हमारी समाधि के इन प्रतीको के पास आकर अपनी बात रखना जहाँ सजल श्रृद्धा के रूप में माता जी तुम्हारे सारे कष्टों को दूर करेगी और में प्रखर प्रज्ञा के रूप में तुम्हारा मार्गदर्शन करूंगा।
ऋषि युग्म के इस आश्वासन को सभी साधकों ने जीवन में कई बार अनुभव किया है। इन्हीं साधकों में से एक सन्दीप त्रिपाठी जो कि रायबरेली गायत्री परिवार के सकिय कार्यकर्ता रहे हैं ने अपन अनुभव साझा करते हुए बताया कि सन् 2009 में बड़ी ही विषम परिस्थितियों में वो अपनी पीड़ा और दुविधा लेकर शान्तिकुन्ज हरिद्वार पहुचें और 3 दिन तक वहां स्थापित इन्ही प्रतीको के समक्ष अपनी पीडा व्यक्त की जिसके बाद उन्हें वहां से जयुपर जाने की प्रेरणा हुई।