जानिये क्या है मुहर्रम, और इसे क्यों कहा जाता है ग़म का महीना?
इस साल मुहर्रम का महीना 31 जुलाई से शुरू हो चुका है। भारत में 9 अगस्त को आशूरा मनाया जाएगा।
स्टार एक्सप्रेस
डेस्क. इस्लाम धर्म के मुताबिक नए साल की शुरुआत हो चुकी है। मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से पहला महीना है। मुहर्रम को आम लोग एक महीना नहीं बल्कि एक पर्व या एक खास दिन के तौर पर मानते हैं। अक्सर लोगों के जहन में ये सवाल आता है कि ये मुहर्रम क्या है। वहीं जो लोग इसके बारे में जानते हैं उनका सवाल ये है कि आखिर इस महीने को गम का महीना क्यों कहा जाता है। आज हम आपको इस खबर इन सवालों के जवाब देने जा रहे हैं।
क्या होता है मुहर्रम?
मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक साल का पहला महीना है। इसी महीने के साथ इस्लामिक साल की शुरुआत होती है। वैसे तो ये एक महीना है लेकिन इस महीने में मुसलमान खास तौर पर शिया मुसलमान पैगंबर मोहम्मद की नवासे की शहादत का गम मनाते हैं।
क्यों कहा जाता है गम का महीना?
सन 61 हिजरी (680 ईस्वी) में इराक के कर्बला में पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन को उनके 72 साथियों के साथ शहीद कर दिया गया था। मुहर्रम में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत का गम मनाते हैं। गिरिया (रोना) करते हैं। क्योंकी इस महीने में पैगंबर के नवासे की शहादत हुई थी, इसीलिए इस महीने को गम का महीना कहा जाता है।
जगह-जगह होती हैं मजलिसें
मुहर्रम में शिया मुसलमान इमाम हुसैन की शहादत का जिक्र करते हैं। उनका गम मनाने के लिए मजलिसें (कथा) करते हैं। मजलिसों में इमाम हुसैन की शहादत बयान की जाती है। मजलिस में तकरीर (स्पीच) करने के लिए ईरान से भी आलिम (धर्मगुरू) आते हैं और जिस इंसानियत के पैगाम के लिए इमाम हुसैन ने शहादत दी थी उसके बारे में लोगों को बताते हैं।