श्रीविष्णु दोलोत्सव कामदा एकादशी पर फलाहार भण्डारे का हुआ आयोजन

जानिए आखिर क्यों मनाई जाती है विष्णु दोलोत्सव सबकी एकादशी

  • समाजसेविका मनीषा पाण्डे़य के आवास चंद्रकला गांव में हुआ फलाहार कार्यक्रम 
  • एकादशी तिथि को क्या करें और क्या न करें, पढ़े पूरी खबर

स्टार एक्सप्रेस/ शारिद

सुल्तानपुर. स्थानीय कुड़वार विकास खंड क्षेत्र के भण्ड़रा चंद्रकला गांव में पूर्व शिक्षक तथा यथार्थ मानस सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीनारायण पाण्डेय के निवास पर बने हनुमान जी मन्दिर परिसर पर श्रीविष्णु दोलोत्सव सबकी एकादशी के अवसर पर मंगलवार को फलाहार भण्डा़रे का आयोजन किया गया।

यथार्थ मानस सेवा ट्रस्ट की प्रदेश सचिव व प्रबुद्ध समाज की महिला मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष समाजसेविका मनीषा पाण्डे़य के जेष्ठ भाई चन्द्र शेखर पाण्डेय ने सभी आगंतुकों का स्वागत करते हुए फलाहार कराया। उन्होंने स्टार एक्सप्रेस की न्यूज़ टीम से बात करते हुए कहा कि आज का यह फलाहार कार्यक्रम बहुत सूक्ष्म रहा। केवल आस-पास के लोगों को ही आमंत्रित किया गया।

इस अवसर पर श्रीनारायण पाण्डेयजी, पंडित कन्हैया पांडेय, उदय भान दूबे, अमित पाठक, राज मणि पाण्डेय, जगदीश मिश्रा, लालता प्रसाद मिश्रा, श्याम लाल पाण्डेय, मनवोध पाठक आदि कई लोग मौजूद रहे।

जानिये क्यों मनाई जाती है विष्णु दोलोत्सव सबकी एकादशी और क्या है इसका महत्व

 

हिंदी पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में श्री विष्णु दोलोत्सव सबकी एकादशी में व्रत और पूजन का विधान है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महर्षि वेद व्यास जी से पांडु तथा कुंती के पुत्र भीमसेन कहते हैं कि मेरी माता और सभी भ्राता आदि एकादशी का व्रत करते हैं, परंतु मैं भोजन के बिना नहीं रह पाता।

अत: हे पूज्य महर्षि व्यास जी कृपा करके कोई ऐसा उपाय बताइए, जिससे मुझे नरकों का भय न हो तथा वर्ष में एक बार किया जाने वाला कोई एक ऐसा व्रत बताएं, जिसके करने से मेरे सभी पाप कर्मों का नाश हो जाए और मेरा कल्याण हो जाए।

यह सुनकर महर्षि व्यास जी बोले- वृषभ और मिथुन की संक्रांति के बीच ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी आती है जिसका नाम निर्जला एकादशी है। तुम उस एकादशी का व्रत करो। इस व्रत में भोजन व जल ग्रहण नहीं करना चाहिए। एकादशी को सूर्योदय से द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण न करें। ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करना चाहिए। इस प्रकार एकादशी का व्रत उपवास करने से वर्ष की सभी एकादशी के व्रत का फल प्राप्त होता है।

एकादशी व्रत जीव के जन्मों जन्मांतर के पाप कर्मों का नाश करके ब्रह्महत्या जैसे दोष से भी मुक्त करता है। एकादशी व्रत धारण करने वाले जीव को एकादशी के दिन उपवास करके विष्णु, शालीग्राम व श्री कृष्ण की पूजा- अर्चना करके उन्हें तुलसी दल अर्पित करने चाहिए।

 

एकादशी तिथि को क्या करें और क्या न करें

एकादशी तिथि को तुलसी दल (पत्ते) नहीं तोड़ने चाहिए। एक दिन पहले तोड़े तुलसी दल पूजा में उपयोग में लाए जा सकते हैं। व्रत के दिन जल से भरे कलश दान करने चाहिए।यथास्थान पीने के पानी की व्यवस्था इत्यादि करवानी चाहिए।

द्वादशी तिथि को सर्योदय के बाद भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करके उनके चरणामृत से ही व्रत पारण करके व्रत खोलना चाहिए। व्यास जी द्वारा ऐसे सुंदर वचन सुनकर भीमसेन ने एकादशी का व्रत धारण किया तभी से एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाने लगा।

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