नहीं रहें धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव, मेदांता अस्पताल में चल रहा था इलाज

धरती पुत्र पिछले कई दिनों से गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल मे भर्ती थे। रविवार 2 अक्टूबर का अचानक उनकी हालत काफी खराब हो गई जिसके बाद उनको आईसीयू वार्ड में भर्ती किया गया।

स्टार एक्सप्रेस

लखनऊ. धरती पुत्र पिछले कई दिनों से गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल मे भर्ती थे। रविवार 2 अक्टूबर का अचानक उनकी हालत काफी खराब हो गई जिसके बाद उनको आईसीयू वार्ड में भर्ती किया गया. जहां पर वरिष्ठ चिकित्सकों की देख रेख में उनका इलाज चला। आज उन्होंने वही पर आखिरी सांस ली. आपको बता दे कि मुलायम सिंह यादव के फेफड़े,किडनी में समस्या थी।

नेता जी का बीपी भी अनियंत्रित चल रही थी। मुलायम सिंह यादव की देख रेख लगातार चिकित्सक कर रहे थे.नेता जी के फेफड़े में समस्या के चलते सांस लेने में तकलीफ थी. ऐसे में उन्हें वेंटिलेटर का सपोर्ट दिया गया था। किडनी में दिक्कत के चलते डायलिसिस भी की गई थी। दवाओं के जरिए बीपी में सुधार हो रहा था जो काफी नहीं था। डाक्टर्स उन्हें हाई एंटीबायोटिक की डोज दे रहे थे।

आपको बता दें कि मुलायाम सिंह की हेल्थ अपडेट को लेकर मेदांता अस्पताल लगातार बुलिटिन जारी कर रहा था। जिसमे उनके चल रहे इलाज को लेकर बात बताई जा रही थी। उनके सर्थकों और तमाम वरिष्ठ नेताओं का का तांता लगातार मेदांता अस्पताल के बाहर लगा रहा। ऐसे मे कोई ये यकीन नही कर पा रहा कि नेता जी अब हम सब के बीच नही रहे। आपको बता दें कि पिछले लंबे समय से उनका इलाज मेदांता मे चल रहा था। देश भर में नेता जी के लिए लगातार दुआएँ प्रर्थनाएं की जा रही थी लेकिन कोई काम नही आई। देश के अलग अलग हिस्से में समर्थकों ने उनके लिए हवन व पूजन किया लेकिन कुछ भी काम नही आया।

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नेताजी का शुरूआती जीवन बेहद संघर्षपूर्ण रहा। बावजूद इसके संघर्षों का रास्ता तय करते हुए राजनीति के शिखर पर पहुंचने वाले मुलायम सिंह यादव हमेशा ही सादगीपूर्ण और शालीन जीवन के प्रतीक रहे हैं. एक राजनेता से बढ़कर वो एक बेहद सज्जन इंसान थे और उनकी यह सादगी और शालीनता का ही प्रभाव था कि विपक्ष के दूसरे नेता भी हमेशा नेताजी का हमेशा सम्मान करते थे।

राम मनोहर लोहिया और राज नारायण जैसे नेताओं की विचारधारा से पोषित मुलायम सिंह यादव को पहली बार 1967 में उत्तर प्रदेश की विधान सभा में विधान सभा के सदस्य के रूप में चुना गया था. साल 1975 में, इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू होने के दौरान, मुलायम सिंह यादव को गिरफ्तार भी कर लिया गया और 19 महीने के लिए हिरासत में रखा गया था।

साल 1977 में वे पहली बार राज्य मंत्री बने। बाद में, साल 1980 में, वे उत्तर प्रदेश में लोक दल (पीपुल्स पार्टी) के अध्यक्ष बने, जो बाद में जनता दल का हिस्सा बन गया। 1982 में, वह उत्तर प्रदेश विधान परिषद में वे विपक्ष के नेता चुने गए और 1985 तक उस पद पर रहे। वहीं जब लोक दल पार्टी का विभाजन हुआ, तो दिवंगत सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने क्रांतिकारी मोर्चा पार्टी का शुभारंभ किया।

नवंबर 1990 में वीपी सिंह की राष्ट्रीय सरकार के पतन के बाद, नेताजी चंद्रशेखर की जनता दल (सोशलिस्ट) पार्टी में शामिल हो गए और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के समर्थन से मुख्यमंत्री के रूप में बने रहे। हालांकि, अप्रैल 1991 कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया और उनकी सरकार गिर गई। बाद में यूपी में मध्यावधि चुनाव हुए जिसमें मुलायम सिंह की पार्टी भाजपा से हार गई।

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