सर्वे के अनुसार इतनी सीटों पर बाजी मारती दिख रही AAP, जानने के लिये पढ़े पूरी खबर

गुजरात के सौराष्ट्र-कच्छ की 54 सीटों के लिए ओपिनियन पोल के नतीज बता रहे हैं कि कांग्रेस को यहां सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है।

स्टार एक्सप्रेस

डेस्क. गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के लिए एक हफ्ते से भी कम का समय बचा है। सभी दलों ने चुनाव से पहले जीत के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। गुजरात (Gujarat) में इस बार दो चरणों 1 और 5 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे, जबकि रिजल्ट हिमाचल प्रदेश के साथ ही 8 दिसंबर को आएंगे।

 

इस बीच टाइम्स नाउ नवभारत और ईटीजी ने गुजरात के सौराष्ट्र-कच्छ को लेकर ओपिनियन पोल किया है। ओपिनियन पोल में सौराष्ट्र-कच्छ में बीजेपी (BJP) को बढ़त मिलती दिख रही है। वहीं, कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान होता दिख रहा है। ओपिनियन पोल में आम आदमी पार्टी (AAP) को सबसे ज्यादा फायदा मिलता दिख रहा है।

गुजरात में विधानसभा की कुल 182 सीटें है, जिनमें से अकेले सौराष्ट्र-कच्छ में विधानसभा की 54 सीटें हैं. टाइम्स नाउ नवभारत और ईटीजी के ओपिनियल पोल में चुनाव में बीजेपी को 31, कांग्रेस को 12 और आम आदमी पार्टी के खाते में 10 वहीं एक अन्य के खाते में आ सकती हैं.

AAP को सबसे ज्यादा फायदा

ओपिनियन पोल में बीजेपी को सौराष्ट्र कच्छ में इस बार 8 सीटों की बढ़त के साथ 31 सीटें मिलती दिख रही हैं। वहीं, कांग्रेस को 12 सीटें मिल रही हैं, हालांकि पिछले चुनाव के मुकाबले उसे इस बार 18 सीटों का नुकसान होता दिख रहा है। वहीं, आम आदमी पार्टी को इस चुनाव में 10 सीटों मिलने का अनुमान है, जबकि पिछले दो चुनावों में आप यहां अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी।

सौराष्ट्र-कच्छ अहम क्यों ?

गुजरात चुनाव में सौराष्ट्र-कच्छ बेहद अहम माना जाता है। यह पाटीदार बाहुल्य क्षेत्र है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो, जो पार्टी सौराष्ट्र-कच्छ में जीत का परचम लहराती है, उसके गुजरात की सत्ता पर काबिज होने की संभावना ज्यादा रहती है। हालांकि, पिछली बार के चुनाव में ऐसा नहीं हुआ था क्योंकि इस क्षेत्र में बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस ने सीटें जीती थीं।

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2017 में इस क्षेत्र में कांग्रेस ने 30 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि बीजेपी के हिस्से में 23 सीटें ही आई थी और एक सीट अन्य की झोली में चली गई थी। जानकार मानते हैं कि 2017 में इस क्षेत्र में बीजेपी को नुकसान इसलिए उठाना पड़ा था, क्योंकि तब हार्दिक पटेल की अगुवाई में पाटीदार आंदोलन चल रहा था। अब हार्दिक बीजेपी में हैं और वह भी चुनाव लड़ रहे हैं।

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