सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायेतर कबूलनामा साक्ष्य का कमजोर हिस्सा है, लेकिन अगर कोर्ट संतुष्ट है कि यह स्वेच्छा से दिया गया है तो यह व्यक्ति को दोषी ठहराने का आधार हो सकता है। जस्टिस आर भानुमति और इंदिरा बनर्जी की पीठ ने अदालती कार्यवाही से बाहर कबूलनामे से जुड़े मामलों में कहा कि अदालत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए सबूतों से इसकी पुष्टि हो सके।

सुप्रीम कोर्ट ने दोषी बैंक कर्मचारी की याचिका पर यह आदेश दिया। हालांकि पीठ ने याचिकाकर्ता को दोषी मानते हुए उसकी सजा पांच वर्ष से घटाकर तीन वर्ष कर दी। याचिकाकर्ता ने कहा था कि दो वरिष्ठ बैंक अधिकारियों के समक्ष दिए गए बयान के आधार पर कोर्ट ने उसे दोषी ठहराया।
उसने दावा किया कि यह कहा नहीं जा सकता कि उसका बयान स्वैच्छिक था। इस पर पीठ ने कहा कि निचली अदालत और हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कबूलनामा स्वेच्छा से किया गया था और यह उसे दोषी ठहराने का आधार हो सकता है।