सर्दियों के मौसम में अस्पताल में भर्ती होने की दर और दिल गति रुकने (हार्ट फेल) मरीजों की मृत्युदर में अधिकता देखी गई है। इन दिनों अपने दिल का ख्याल कैसे रखें, इसके लिए चिकित्सकों ने कुछ तरीका सुझाए हैं। मुंबई के ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल के इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ। देवकिशन पहलजानी का कहना है कि सर्दियों के इस असर की जानकारी से मरीजों व उनके परिवारवालों को लक्षणों के प्रति ज्यादा ध्यान देने के लिये प्रेरित करती है। यह पाया गया कि एआरएनआई थैरेपी जैसे उन्नत इलाज जीवनशैली में परिवर्तन के साथ व बेहतर हो सकते हैं, जिससे हार्ट फेलियर मरीजों की जिंदगी में उल्लेखनीय रूप से सुधार लाया जा सकता है।
उन्होंने कहा, “हार्ट फेलियर मरीज व उन मरीजों में जिनमें से पहले से ही दिल संबंधी परेशानियां हैं, उन्हें खासतौर से ठंड के मौसम में सावधानी बरतनी चाहिए। साथ ही अपने दिल की देखभाल के लिए जीवनशैली में निम्नलिखित परिवर्तन करने चाहिए। ” डॉ। देवकिशन पहलजानी ने कहा, “डॉक्टर से सलाह लेकर घर के अंदर दिल को स्वास्थ्य वर्धक रखने वाली अभ्यास करें, नमक व पानी की मात्रा कम कर दें, क्योंकि पसीने में यह नहीं निकलता है। रक्तचाप की जांच कराते रहें, ठंड की परेशानियों जैसे-कफ, कोल्ड, फ्लू आदि से खुद को बचाए रखें व जब आप घर पर हों तो धूप लेकर या फिर गर्म पानी की बोतल से खुद को गर्म रखें। ”
ठंड का मौसम किस तरह हार्ट फेलियर मरीजों को प्रभावित करता है जिसपर डॉक्टर ने बोला कि हार्ट फेलियर वाली स्थिति तब होती है, जब दिल बॉडी की जरूरत के अनुसार ऑक्सीजन व पोषक तत्वों की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त खून पंप नहीं कर पाता है। इसकी वजह से ह्दय निर्बल हो जाता है या समय के साथ दिल की मांसपेशियां कठोर हो जाती हैं। उन्होंने कहा, “ठंड के मौसम में तापमान कम हो जाता है, जिससे ब्लड वेसल्स सिकुड़ जाते हैं, जिससे बॉडी में खून का संचार अवरोधित होता है। इससे दिल तक ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है, जिसका अर्थ है कि दिल को बॉडी में खून व ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए अलावा श्रम करना पड़ता है। इसी वजह से ठंड के मौसम में हार्ट फेलियर मरीजों के अस्पताल में भर्ती होने का खतरा बढ़ जाता है। ”
हार्ट फेलियर के लिए खतरे के कुछ कारक
उच्च रक्तचाप: ठंड के मौसम में शारीरिक कार्यप्रणाली पर असर पड़ सकता है, जैसे सिम्पैथिक नर्वस सिस्टम (जोकि तनाव के समय शारीरिक रिएक्शन को नियंत्रित करने में मदद करता है) सक्रिय हो सकता है व कैटीकोलामाइन हॉर्मेन का स्राव हो सकता है। इसकी वजह से दिल गति के बढ़ने के साथ रक्तचाप उच्च हो सकता है व रक्त वाहिकाओं की रिएक्शनकम हो सकती है, जिससे ह्दय को अलावा कार्य करना पड़ सकता है। इस कारण हार्ट फेलियर मरीजों को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ सकता है।
वायु प्रदूषण: ठंडा मौसम, धुंध व प्रदूषक जमीन के व करीब आकर बैठ जाते हैं, जिससे छाती में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है व सांस लेने में कठिनाई पैदा हो जाती है। आमतौर पर हार्ट फेल मरीज सांस लेने में तकलीफ का अनुभव करते हैं व प्रदूषक उन लक्षणों को व भी गंभीर बना सकते हैं, जिसकी वजह से गंभीर मामलो में अस्पताल में भर्ती कराना पड़ सकता है।
कम पसीना निकलना: कम तापमान की वजह से पसीना निकलना कम हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप बॉडी अलावा पानी को नहीं निकाल पाता है व इसकी वजह से फेफड़ों में पानी जमा हो सकता है, इससे हार्ट फेलियर मरीजों में ह्दय की कार्यप्रणाली पर गंभीर असर पड़ सकता है।
विटामिन-डी की कमी: सूरज की रोशनी से मिलने वाला विटामिन-डी, दिल में स्कार टिशूज को बनने से रोकता है, जिससे हार्ट अटैक के बाद, हार्ट फेल में बचाव होता है। सर्दियों के मौसम में सही मात्रा में धूप नहीं मिलने से, विटामिन-डी के स्तर को कम कर देता है, जिससे हार्ट फेल का खतरा बढ़ जाता है।