सन 47 में राष्ट्र आजाद होने के बाद सरदार पटेल के प्रयासों से देसी रियासतों का एकीकरण तो हो गया लेकिन गोवा, हिंदुस्तान के गुलाम नहीं आया। ऐसा इसलिए क्योंकि वहां पर 1510 से ही पुर्तगालियों का औपनिवेशिक शासन था। आजादी के बाद भी हिंदुस्तान के आग्रह के बावजूद जब पुर्तगाल ने गोवा व दमन एवं दीव पर अपने नियंत्रण को नहीं छोड़ा तो हिंदुस्तान ने ऑपरेशन विजय के तहत 18-19 दिसंबर, 1961 को वहां सैन्य ऑपरेशन किया। उसके 36 घंटे के भीतर ही गोवा हिंदुस्तान का हिस्सा बन गया। इस कारण 19 दिसंबर को हर वर्ष गोवा मुक्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है। 30 मई, 1987 को गोवा को अलग राज्य का दर्जा दिया गया जबकि दमन एवं दीव केंद्रशासित एरिया बने रहे। इस संदर्भ में गोवा में पुर्तगालियों के 451 वर्ष के शासन के इतिहास पर आइए डालते हैं एक नजर:
पुर्तगाल
हिंदुस्तान में सबसे पहले पुर्तगाली आए। उन्होंने 1510 में बीजापुर के सुल्तान युसूफ आदिल शाह को हराकर वेल्हा गोवा (पुराना गोवा) पर कब्जा कर स्थाई कॉलोनी बनाई। 1843 में उन्होंने पणजी को राजधानी बनाया। हालांकि अंग्रेजों से इतर पुर्तगाल की नीतियां अपेक्षाकृत उदार रहीं। गोवा के कुलीन तंत्र को पुर्तगाल ने कुछ विशेषाधिकार दिए थे। 19वीं सदी में ये व्यवस्था हुई कि गोवा में जो लोग संपत्ति कर देते थे, उनको पुर्तगाली संसद में गोवा का प्रतिनिधि चुनने के लिए मत देने का अधिकार मिल गया।
गोवा मुक्ति आंदोलन
1910 में पुर्तगाल में राजशाही का खात्मा हो गया। इससे इसकी सभी औपनिवेशिक कॉलोनियों को लगा कि उनको स्व-शासन का अधिकार मिल जाएगा लेकिन पुर्तगाल की नीतियों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। लिहाजा यहां पर पुर्तगाल से आजादी की आवाज उठी। 1920 के दशक में डॉ त्रिस्ताव ब्रगेंजा कुन्हा(1891-1958) के नेतृत्व में आजादी की मांग तेज हुई।इस कारण उनको ‘गोवा राष्ट्रवाद का जनक’ भी बोला जाता है।
1946 में समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया गोवा में अपने दोस्त से मिलने गए। वहां पर उनकी गोवा की मुक्ति के संदर्भ में चर्चा हुई। लिहाजा लोहिया ने वहां पर सविनय अवज्ञा आंदोलन किया। औपनिवेशिक गोवा के 435 वर्षों में यह अपनी तरह का पहला आजादी से जुड़ा आंदोलन था। यह इसलिए भी अहमियत रखता है क्योंकि गोवा में पुर्तगाली गवर्नमेंट ने किसी भी प्रकार की जनसभा पर पाबंदी लगा रखी थी। हजारों लोगों ने इसमें हिस्सा लिया। हालांकि बाद में लोहिया को पकड़कर गोवा से बाहर भेज दिया गया।
सन 47 के बाद
आजादी के वक्त इंडियन नेताओं को लगा कि अंग्रेजों के जाने के बाद पुर्तगाली भी यहां से चले जाएंगे लेकिन पश्चिमी तट पर गोवा की रणनीतिक स्थिति के कारण पुर्तगाल इसको छोड़ने पर राजी नहीं हुआ।
27 फरवरी, 1950 को हिंदुस्तान गवर्नमेंट ने पुर्तगाल से हिंदुस्तान में मौजूद कॉलोनियों के विषय में वार्ता का आग्रह किया। लेकिन पुर्तगाल ने बोला कि गोवा उसकी कॉलोनी नहीं बल्कि महानगरीय पुर्तगाल का हिस्सा है। इसलिए हिंदुस्तान को इसका हस्तांतरण नहीं किया जा सकता। नतीजतन हिंदुस्तान के पुर्तगाल से कूटनीतिक संबंध बेकार हो गए। 11 जून, 1953 को हिंदुस्तान ने लिस्बन से कूटनीतिक मिशन हो हटा लिया। 1954 में गोवा से हिंदुस्तान के विभिन्न हिस्सों में जाने के लिए वीजा पाबंदियां लगा दी गईं।
इस बीच गोवा में पुर्तगाल गवर्नमेंट के विरूद्ध आंदोलन तेज होता गया। 1954 में दादर व नागर हवेली के कई ऐंक्लेव्स पर हिंदुस्तानियों ने कब्जा कर लिया। पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू ने बोला कि पुर्तगाल की गोवा में मौजूदगी को गवर्नमेंट बर्दाश्त नहीं करेगी। लेकिन पुर्तगाल अपनी बात पर अड़ा रहा व जब गोवा में असंतोष उसके विरूद्ध बढ़ता गया तो 18 दिसंबर, 1961 को हिंदुस्तान ने गोवा, दमन व दीव पर सैन्य हस्तक्षेप किया। अगले 36 घंटे के भीतर जमीनी, समुद्री व हवाई हमले में पुर्तगाल के पांव उखड़ गए। पुर्तगाल के गवर्नर जनरल वसालो इ सिल्वा ने इंडियन सेना के सामने सरेंडर कर दिया व इस तरह गोवा 451 वर्ष बाद पुर्तगाल के चंगुल से आजाद हो गया।