‘मामा’ शिवराज सिंह चौहान आज की पॉलिटिक्स में एक अलग किस्म के नेता हैं। आज पॉलिटिक्स में तल्खी बढ़ती जा रही हैं, वहीं मध्य प्रदेश के CM शिवराज सिंह चौहान शायद ही कभी विपक्षी पर पर्सनल हमला करते हैं। किसी भी किस्म की टोपी लगाने से भी उन्हें परहेज नहीं। उनकी छवि एक ‘हार्मलेस’ नेता की है व यही वजह है कि महिलाएं उनसे खुद को बेहद सरलता से जोड़ लेती हैं।
मध्य प्रदेश भाजपा व आरएसएस का भी मजबूत आधार रहा है। इसके बावजूद अगर आज शिवराज के ‘राज’ पर प्रश्न चिन्ह है, तो इसकी वजह वो दवा है, जो राज्य को खुद शिवराज सिंह ने दी, जो आज दर्द बन चुकी है। वो है कृषि पैदावार में भारी बढ़ोतरी।
दवा ही बनी दर्द!
भाजपा ने 2003 का चुनाव ‘बीएसपी’ के मुद्दे पर जीता था। बसपा यानी बिजली पानी व सड़क। ये चुनाव उमा भारती के नेतृत्व में लड़ा गया। एक अप्रत्याशित हालात में जब राज्य की कमान शिवराज सिंह के हाथ में आई तो उन्होंने सबसे ज्यादा फोकस कृषि पर दिया। मध्य प्रदेश ने कृषि विकास दर व फसलों के उत्पादन में नए रिकॉर्ड बनाए। लेकिन उत्पादन में हुई ये भारी बढ़ोतरी ही अब राज्य में संकट बन चुकी है। अब पैदावार तो है, लेकिन फसल के दाम नहीं मिल रहे।
मोदी गवर्नमेंट के शुरुआती दो वर्ष में सुखा पड़ा व कृषि एरिया पर इसका निगेटिव प्रभाव हुआ, लेकिन ये एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है कि बाद के दो वर्ष में बारिश अच्छी हुई, पैदावार अच्छी हुई, इसके बावजूद खेती-किसानी की हालत व बेकार हो गई। शिवराज सिंह खुद कृषि पृष्ठभूमि से आते हैं। उनका परिवार किसान परिवार है। किसी दूसरे नेता के मुकाबले वो इस संकट को ज्यादा अच्छी तरह समझे हैं। इसलिए शिवराज ने भावांतर योजना प्रारम्भ की। जन आशीर्वाद रैली से किसानों को जोड़ने की प्रयास की।
यूथ व सवर्ण की नाराजगी
कांग्रेस ने इस बार चुनाव में आरंभ से ही कृषि संकट पर जोर दिया। ये एक ऐसा भावनात्मक मुद्दा है जो दिल्ली के बुद्धिजीवी से लेकर गांव के भूमिहीन किसान तक सभी को जोड़ता है।लेकिन कांग्रेस पार्टी को सिर्फ कृषि संकट के चलते बढ़त मिली है, ऐसा नहीं है। कमलनाथ, सिंधिया व दिग्विजय सिंह, इनमें से कोई भी ग्रामीण चेहरा नहीं है।
बीजेपी को लेकर नाराजगी की दो व वजहें हैं- भाजपा का कोर वोटर यानी सवर्ण इस बार नाराज है। नाराजगी की वजह है आरक्षण व एससी/एसटी एक्ट। इस दौरान सवर्णों के सबसे अधिक उग्र आंदोलन मध्य प्रदेश में ही हुए। दूसरी वजह है यूथ की नाराजगी। यूथ के सब्र का बांध अब टूट रहा है। वो ये मानता है कि विकास हो रहा है, लेकिन उसे रोजगार भी चाहिए।अब यूथ को लग रहा है कि विकास के जश्न में उसकी हिस्सेदारी नहीं है।
कांग्रेस का रणनीति
कांग्रेस पार्टी ने युवाओं को रिझाने के लिए बेरोजगारी भत्ते का वादा किया। ज्योतिरादित्य सिंधिया के चेहरे ने भी युवाओं का रिझाने का कार्य किया। इसके अतिरिक्त 10 दिन में कर्ज माफी के वादे ने किसानों को आकर्षित किया। नोटबंदी का प्रभाव भी अब दिख रहा है क्योंकि असंगठित एरिया में रोजगार कम होने से अब गांव को लोगों को शहर में कार्य नहीं मिल रहा है। इसके चलते गांव में संकट बढ़ा है।
इसके बावजूद लोग अभी 2003 के मध्य प्रदेश को भूले नहीं हैं। पिछले 15 सालों में मध्य प्रदेश ने बहुत ज्यादा तरक्की की है व यही शिवराज सिंह चौहान की ताकत है। मध्य प्रदेश के लोगों का उनके साथ एक भावनात्मक लगाव है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भाजपा का वोटर परेशान व नाराज हैं। नाराजगी के इस ज्वार को सिर्फ ‘मामा मैजिक’ ही रोक सकता है। मध्य प्रदेश में भाजपा की पराजय व जीत के बीच शिवराज ही खड़े हैं।