ने अमेरिका को के साथ वार्ता को लेकर आगाह किया है। राजनयिक के मुताबिक तालिबान इस वार्ता के जरिये धोखा देकर अमेरिका को अफगानिस्तान से बाहर कर सकता है, जिससे अफगानिस्तान एक बार फिर अंतर्राष्ट्रीय आतकंवादियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बन सकता है।
अमेरिका में पाक के पूर्व राजनयिक हुसैन हक्कानी ने विदेश नीति से जुड़ी एक प्रतिष्ठित पत्रिका में लिखा, ‘‘अगर अमेरिकी जल्दबाजी में अफगानिस्तान छोड़ने का निर्णय करते हैं, तो जिहादी पूरी संसार में भविष्य के लड़ाकों को यह बताएंगे कि किस तरह उनके धार्मिक जुनून के साथ आतंकवाद के मिलावट ने संसार की दो सैन्य महाशक्तियों पर जीत हासिल की। ’’
इससे पहले सोवियत संघ को भी अफगानिस्तान से बाहर जाना पड़ा था। हक्कानी ने यह विचार हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा पाक के पीएम इमरान खान को लिखे गए उस लेटर के बाद रखे हैं, जिसमें ट्रंप ने इमरान से अफगानिस्तान में शांति के लिये पाक का योगदान मांगा था।
हक्कानी ने लिखा, अमेरिका के नजरिये से, अफगानिस्तान पिछड़ा हुआ राष्ट्र है जो सिर्फ विरोधियों के इस पर नियंत्रण के दौरान सामरिक दृष्टि से जरूरी हो जाता है। अमेरिका ने 1980 के दशक में सोवियत संघ को हटाने के लिए अफगानों का समर्थन किया था। बताते चलें कि अफगानिस्तान में शांति के लिए सालों से अमेरिका ने अपने सैनिकों को तैनात कर रखा है, लेकिन इस दौरान हुए तालिबान के हमलों के चलते अनेक अमेरिकी सैनिकों को भी जान गंवानी पड़ी है।