निधिवन में गोपियों के साथ रास रचाते थे कन्हैया

पांच सितम्बर को जन्माष्टमी मनाई जाएगी। मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की तैयारी भी शुरू हो गई हैं। श्रीकृष्ण की जन्मस्थली होने के कारण मथुरा का इस पर्व पर विषेष महत्व है। पूरा शहर मानो उत्सव में डूबा रहता है। श्रीकृष्ण की लीलाओं के चर्चे देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हैं। उन्हीं में से एक लीला है रासलीला। ऐसी मान्यता है कि वृंदावन में स्थित निधिवन में श्रीकृष्ण गोपियों के साथ रास रचाते थे और ये सिलसिला यहां आज भी जारी है। इसलिए सुबह से दर्शन के लिए खुला रहने वाला निधिवन शाम को बंद कर दिया जाता है। ये भी कहा जाता है कि यहां रात को रुककर जिसने भी रासलीला देखनी चाही, उसने या तो अपना मानसिक संतुलन खो दिया या फिर उसकी मौत हो गई।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, निधिवन के अंदर बने रंग महल में रोज रात को कन्हैया आते हैं। रंग महल में राधा और कन्हैया के लिए रखे गए चंदन के पलंग को शाम सात बजे से पहले सजा दिया जाता है। पलंग के बगल में एक लोटा पानी, राधाजी के श्रृंगार का सामान और दातुन संग पान रख दिया जाता है।
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पर्वतों पर आज भी मौजूद हैं कृष्ण के पैरों के निषान
ब्रज को कृष्ण की लीलास्थलली कहा जाता है। यहां श्रीकृष्ण बांसुरी बजाते थे और गोपियों के साथ रासलीला करते थे। इन पर्वतों पर उनके पैरों के निशान आज भी मौजूद हैं। इसके दर्शन के लिए दूरदराज से भक्त आते हैं। कृष्ण की बांसुरी की धुन पर सिर्फ ब्रज की गोपियां ही फिदा नहीं थीं, ये पहाड़-पर्वत भी उनकी बांसुरी की धुन पर मोहित थे। यहां कृष्ण अपने सखाओं के साथ गाय भी चराने जाते थे। इस दौरान वहां घंटों बैठकर बांसुरी बजाया करते थे। धुन इतनी मीठी और मोहक होती थी कि ये पर्वत भी पिघल जाते थे। यहां मौजूद उनके पैरों के निशान इस बात की तस्दीक करते हैं।
ब्रज में चारा धाम
श्री कृष्ण की लीलास्थली ब्रज में आज भी केदारनाथ धाम विराजमान है। यहां शिव और पार्वती की महिमा कुछ अलग ही देखने को मिलती है। मान्यता है कि बुजुर्ग माता पिता को चार धाम की यात्रा पर जाते देख श्री कृष्ण ने आह्वान करके वहां चारों धाम को बुलाया था। इसके बाद एक-एक करके सारे तीर्थ ब्रज में आ गए। ये भी माना जाता है कि इस शिवलिंग के दर्शन से ही लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। मंदिर से पहले एक पत्थर पर प्राकृतिक रूप से गणेश जी की छवि है, जबकि शिवलिंग की सुरक्षा के लिए उनके ऊपर शेषनाग के रूप में एक पहाड़ मौजूद है। मंदिर के महंत बाबा सुखदेव दास बताते हैं कि द्वापर युग में जब वृद्धावस्था में भी नंद बाबा और यशोदा को संतान नहीं हुई, तो उन्होंने भगवान शिव शंकर से मन्नत मांगी कि पुत्र होने पर वे चारधाम की यात्रा करेंगे। इसके बाद करीब 80 साल की उम्र में श्री श्रीकृष्ण उनके यहां छोटे बालक के रूप में आए।

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